. PC: Ekcupt एक एकल मानुस की पीड़ा, जिसके पास कहानियाँ बहुत थीं, पर सुननेवाला कोई न था। जिसके साथी कई थे पर साथ निभाने कोई न था। उम्र के अंतिम पड़ाव में , जब सांसे गिनती की बचीं थी, तो उनको गिनने वाला कोई न था। .......... .............….... .................. थक गया ज़िन्दगी से देखो ,फिर वो पड़ाव आया, लड़खडाते कदमों को देखो , मंज़िलों का सलाम आया। मन थका था ,तन भी कहाँ जवान था, सोच सुस्ताने लगी थी, उम्र में अब बड़प्पन आया। देखे कई पतझर, सावन भी हर साल आया, घरोंदों में देखो अब तो ,केवल तसवीरों का रहा साया। रोज़ रात चाँद वो निकलता,पर कहाँ अब कोई सपना लाया, चाँदनी में अब शोले बरसते,आँखों मे अब नमी को बसाया। इंतज़ार उस सूरज का रहता, फिर जो थोड़ी हलचल लाता, बाहार ना सही ,पतझड़ में भी फूल वो खिलाता। हर नाता छूटा ,बंधन न तोड़ पाता, देखो अपनों के आने की चाह में , अपने संग चाय की और दो प्याली सजाता। दिन डूबा ,देखो फिर ये एहसास आया, घरोंदों में देखो अब ...