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उड़ान

 जब दिया पूरा आकाश तुझे , क्यों डोर तेरी मैं कसती जाऊँ, तू पतंग नही ,इस आसमान में , ढील देकर तुझे ,मैं जो लपेट लगाऊं। तू तो मेरी चिरैया प्यारी, गगन में स्वछंद तुझे है उड़ना, तुझे देख मैं गद गद हो जाऊं। पंख पसारे देख तुझे मैं, खुश हो तुझ संग उड़ती जाऊँ। तेरे सपनों को ,अपनी आँखों में ,मैं तो हर पल सजाऊँ। मेरी चिरैया,  तब तुझ संग मैं भी तो उडती जाऊँ।।लोमा।।

एकल साया

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.                                     PC:  Ekcupt एक एकल मानुस की पीड़ा, जिसके पास कहानियाँ बहुत थीं, पर सुननेवाला कोई न था। जिसके साथी कई थे पर साथ निभाने कोई न था।  उम्र के अंतिम पड़ाव में , जब सांसे गिनती की बचीं थी, तो उनको गिनने वाला कोई न था। .......... .............….... .................. थक गया ज़िन्दगी से देखो ,फिर वो पड़ाव आया, लड़खडाते कदमों को देखो , मंज़िलों का सलाम आया। मन थका था ,तन भी कहाँ जवान था, सोच सुस्ताने लगी थी, उम्र में अब बड़प्पन आया। देखे कई पतझर,  सावन भी हर साल आया, घरोंदों में देखो अब तो ,केवल तसवीरों का रहा साया। रोज़ रात चाँद वो निकलता,पर कहाँ अब कोई सपना लाया, चाँदनी में अब शोले बरसते,आँखों मे अब नमी को बसाया। इंतज़ार उस सूरज का रहता, फिर जो थोड़ी हलचल लाता, बाहार ना सही ,पतझड़ में भी फूल  वो खिलाता। हर नाता छूटा ,बंधन न तोड़ पाता, देखो अपनों के आने की चाह में , अपने संग चाय की और दो प्याली सजाता। दिन डूबा ,देखो फिर ये एहसास आया, घरोंदों में देखो अब ...