छल
आज हमारे समाज मे बहुत सारी कुरीतियों और प्रथाओं का अंत हो चला है।हम ऊंच नीच का भेद भाव भी भूल चुके है। पर एक वर्ग ऐसा भी है जिसे कुदरत ने छला है,और हमें उनके साथ हुए धोके को उनका साथ देकर और उनका आत्मविश्वास बढा कर उनका प्रोत्साहन बढ़ाना है। # छल छल किया कुदरत ने देखो,विधाता ने क्या खेल रचाया। पुरुष शरीर में स्त्री का मन, और स्त्री की काया में पुरुष मन बसाया। छल करती कुदरत भी देखो, क्यों उसने ऐसे प्राणी बनाए । समाज के ठेकेदारों से जो जूझने हर पल , अपना अस्तित्व वह दाव पर लगाएं । पिता संग देखो पुत्र जब करता, श्रृंगार की बातें बतियाए, कत्थक बैली हो या कोई नृत्य की प्रेरणा वो पाए, पिता दुहाई देकर समाज की उसे पौरुष याद दिलाएं । छल तब भी होता , जब मां जनती है उसको ,ना पुत्र या पुत्री के लिंग में, फिर खुशी कोई ,मिलती ना उसको समाज में हर उम्र में। अपने अधिकार के लिए, जब वह लड़का , नपुंसक लिंग गाली की तरह है सुनता । छल तब भी होता जब कुछ युवक धार कर उसका वेश ,सब को ठग है जाते। लोग उनको देखकर फिर एक अछूत निगाह से दूर...