थम सा गया जीवन

थम सा गया जीवन ,न कोई हलचल, ना है कोई महफिल, थम सा गया जीवन। सोच ऐसी रुक सी गई ,थम सा गया जीवन । कार्य जैसे थमते नहीं ,पर थे एक ही से हर दिन । कपड़े पड़े अलमारियों में ,सोचा करें कुछ यूं , मेरे मालिकों की तबीयत को हो क्या गया हर दिन, थम सा गया क्या उनका जीवन? सोच मेरी एक और ही जाए , मन का परिंदा जैसे उड़ना भूल जाए । चिड़ियों की आहट होती कुछ ज्यादा, पर कहां मेरी कलम रगड़ती थी ज्यादा । हर पल हर लम्हा जैसे थम सा गया था , उम्मीद थी, डर भी था ,न जाने कब ,कहां ,कैसे का खौफ भी था । पर फिर भी उम्मीद ज्यादा थी ख़ौफ़ से , विश्वास अधिक था, इस महामारी के प्रकोप से । उम्मीद थी कई सपनों की ,कुछ अपनों की ,कुछ गैरों की। उम्मीद थी नए मुकाम की , फिर एक बार चलने वाले राह की । इस रात की सुबह नयी थी , थमी सी जो जिंदगी चल पड़ी थी । लोकडौन हटा, फिर चल पड़ी यू जिंदगी , जैसे सपनों से जागकर मैं उठ पड़ी थी । पर डर था ,है ,रहेगा हमेशा, रफ्तार के फिर थमने का। अंदेशा हमेशा कहीं फिर न रुक जाए सोच, और थम न जाये ये जीवन। और इस सोच म...