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Showing posts from May, 2020

थम सा गया जीवन

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थम सा गया जीवन ,न कोई हलचल, ना है कोई महफिल, थम सा गया जीवन। सोच ऐसी रुक सी गई ,थम सा गया जीवन । कार्य जैसे थमते नहीं ,पर थे एक ही से हर दिन । कपड़े पड़े अलमारियों में ,सोचा करें कुछ यूं , मेरे मालिकों की तबीयत को हो क्या गया हर दिन, थम सा गया क्या उनका जीवन? सोच मेरी एक और ही जाए , मन का परिंदा जैसे उड़ना भूल जाए । चिड़ियों की आहट होती कुछ ज्यादा, पर कहां मेरी कलम रगड़ती थी ज्यादा । हर पल हर लम्हा जैसे थम सा गया था , उम्मीद थी, डर भी था ,न जाने कब ,कहां ,कैसे का खौफ भी था । पर फिर भी उम्मीद ज्यादा थी ख़ौफ़ से , विश्वास अधिक था, इस महामारी के प्रकोप से । उम्मीद थी कई सपनों की ,कुछ अपनों की ,कुछ गैरों की। उम्मीद थी नए मुकाम की , फिर एक बार चलने वाले राह की । इस रात की सुबह नयी थी , थमी सी जो जिंदगी चल पड़ी थी । लोकडौन हटा, फिर चल पड़ी यू जिंदगी , जैसे सपनों से जागकर मैं उठ पड़ी थी । पर डर था ,है ,रहेगा हमेशा, रफ्तार के फिर थमने का। अंदेशा हमेशा कहीं फिर न रुक जाए सोच, और थम न जाये ये जीवन। और इस सोच म...

दरवाज़े की घंटी

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दरवाज़े की घंटी बजी तो, दिल थम सा गया ,ऐसा लगा जैसे साक्षात कारोना मानव रूप धारण कर, मुझपर महामारी का प्रकोप दिखाने के लिए दस्तक दे रही हो।   घर मे हलचल मच गई मुझे हिदयतें दी गयी  ।   फिर मैंने भी मास्क लगा कर अनमने मन से द्वार खोला, देखा मेरी कामवाली बेचारी बुझी बुझी सी ,आसभरी निगाहों से मुझसे पैसे मांगने आई थी और बताया कि वो अपने गाँव वापस जा रही है क्योंकि  उसका कहना था "यहां पर हमारा कौन है,हम तो यहां जीविका के लिए आये हुए परदेसी हैं"। और वहां उसका अपना घर है ,अपने लोग हैं।     वो तो पैसे ले कर चली गई, परंतु उसके बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।   शरणार्थी ,प्रवासी, यह सब वह शब्द है, जिनकी तरफ हमारा ध्यान शायद ही कभी जाता हो, शायद आज भी मैं यह सब लिखने के लिए,  प्रेरित ना होती, अगर मुझे उनकी तकलीफों का आभास किसी ने ना कराया होता। सच है घर से कई कई किलोमीटर दूर रहकर ये लोग इस महामारी के समय में कितना कुछ सह रहे हैं , यह हम जैसे लोग Ac के घरों में बैठकर नहीं समझ सकते। महामारी दुनिया के शरणार्थी और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की म...

Badlav

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Today is the day when we shifted to Hyderabad to begin a new life and there are lots of memories and moments in past and they will be always with me giving me happiness and energy . Old is gold it’s a universal truth but we can’t deny destiny and changes in our life so always accept new things live your life enthusiastically and struggle hard to achieve goal .whatever be the circumstances we should face them positively and have courage to fight for good Here are few lines just from my heart to share with you. Badlav aya safar me fir ik bar , Nayi jagah par kutch log purane is safar ke sath. Chhod ayi my bahut kutch, apne Sangi sath, Lekar ayi kutch khatti meethi yaden Apne sath. Chhoot gaya bachoon ka bachpan, Tuitions ne liya playground ka harpal Dost unki kitaben hui, kutch meri unki takrar bhi hui. Meri jeevan shaili bhi badli, Kab maa se teacher my holi, Badal gaya Sara sansar, chale naye safar me Jo fir ik bar. Mud kar dekhon jo my peeche, Sangi sathi sab hai chhoote...

शराबी ये दिल

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देवता हुए प्रसन्न ताली और थाली के बजाने से, फिर जलाया दीप भी भक्तों ने आस से, पुष्प वर्षा भी हुई,जमकर आसमानों से, अभिवादन और अनुसरण किया , हमने भी घरों से, लो आज मिल ही गया तीर्थ हमको , मदिरा के रूप में, बाहर नही तो घर को ही मधुशाला के रूप में, साकी नही तो बीवी से ही पैमाने भरने में, चालीस दिनों की प्यास को बुझाने के रूप में। फिर भीड़ बढ़ेगी ,दारू न दवा बन सकेगी, मास्क लगा कर क्या कभी पीते बनेगी, फिर भी जाएंगे अड्डे पे अब से तीर्थ मिलेगी। मरने के डर से क्या हम जीना ही छोड़ दे, बीवी कि गुलामी कर क्या मर्दानगी छोड़ दें। घर के कामों में सुलह कर क्या उलझना छोड़ दें, पीने से जो हम हैवान होते उस हैवानियत को छोड़ दें, करोना के डर से क्या हम बाहर ही जाना ही छोड़ दें। चलो इन सब से निबटने के लिये, चोखट ही छोड़ दें। मदिरा के पान से जीवन काल में, चलो हम लोकडौन का नियम ही तोड़ दें।।लोमा।।

क्या क्या देखा

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   Date: Dec 6, 1992 Subject: क्या क्या देखा उस वर्ष मैने क्या देखा, ना पूछो क्या क्या देखा। भाई-भाई को लड़ते देखा, घरों को मैने बिखरते देखा, बहनों को मरते देखा, दोस्तों को बिछड़ते देखा। उस वर्ष मैंने क्या देखा, ना पूछो क्या क्या देखा। धर्म को धर्म से लड़ते देखा , राम का अल्लाह से बैर देखा, भाई को भाई से लड़ते देखा, देश का खात्मा होते देखा। उस वर्ष मैंने क्या देखा, ना पूछो क्या क्या देखा। निकलता था जिन घरों से अगरबत्तियों का धुआं, उन्हीं घरों से काला धुआं निकलते देखा। जहां करते थे पाक कुरान की इज़्ज़त, वहीं पर किताबों को बिखरे देखा। हिंदुओं के मन मे डर, मुसलमानों मे खोफ देखा। भाई का भाई से करते प्रतिशोध देखा। नेताओं को सत्ता के खातिर लडाते देखा। उस वर्ष मैंने क्या देखा, ना पूछो क्या क्या देखा। बुझ गया सब कुछ मैंने यह भी देखा, शांत होते हुए आसमा को भी देखा , और तब जमीन पर बहू बेटियों की लाश को देखा, पास ही भाईयों के कब्रिस्तान को भी देखा। उस वर्ष मैंने क्या देखा, ना पूछो क्या क्या देखा। जिसे देख कर आंखें हो गयीं नम , मैने वो नज़ारा देखा, भीगी आंखों से दिल को दहलते देखा ...