शराबी ये दिल
देवता हुए प्रसन्न ताली और थाली के बजाने से,
फिर जलाया दीप भी भक्तों ने आस से,
पुष्प वर्षा भी हुई,जमकर आसमानों से,
अभिवादन और अनुसरण किया ,
हमने भी घरों से,
लो आज मिल ही गया तीर्थ हमको ,
मदिरा के रूप में,
बाहर नही तो घर को ही मधुशाला के रूप में,
साकी नही तो बीवी से ही पैमाने भरने में,
चालीस दिनों की प्यास को बुझाने के रूप में।
फिर भीड़ बढ़ेगी ,दारू न दवा बन सकेगी,
मास्क लगा कर क्या कभी पीते बनेगी,
फिर भी जाएंगे अड्डे पे अब से तीर्थ मिलेगी।
मरने के डर से क्या हम जीना ही
छोड़ दे,
बीवी कि गुलामी कर क्या मर्दानगी
छोड़ दें।
घर के कामों में सुलह कर क्या उलझना
छोड़ दें,
पीने से जो हम हैवान होते उस हैवानियत को
छोड़ दें,
करोना के डर से क्या हम बाहर ही जाना ही
छोड़ दें।
चलो इन सब से निबटने के लिये,
चोखट ही छोड़ दें।
मदिरा के पान से जीवन काल में,
चलो हम लोकडौन का नियम ही तोड़ दें।।लोमा।।
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