स्वर्ग में सरगम

इंद्रलोक की अफ़सराये, नाचे छम छम छम ।

पर  देखो, कोई  सुर भी, 
               ना लग पाते मनमोहनम ।
 देवलोक में भारी विपदा,
          सुरों का ना हो पाए सरगम। 
मीठी वाणी, से करें अब कौन, देवताओं को   प्रसन्न?
 तब देखो आया ख्याल, चिंतित इंद्र को। 
बोले चलो भूलोक हैं जाते,
                           ढूंढ़ लाते किसी को।
सारे विश्व में, मीठी हो जिसकी बानी, 
उसे बुलाते स्वर्ग को।
 हर राग की जिसको  खबर हो ,
हर शैली की जिसे परख हो,
 रंगमंच के हर क्षेत्र में,
 ललित कला के हर खेल में,
 हो जो नर परिपक्व।
  चलो उसे लाकर हम भी भर लें ,
                           स्वर्ग में मधुर सरगम।
देवता भी हो जाए मदमस्त ,
                       सुनकर सुरीले नज़्म ।
नारद मुनि से इंद्र बोले ,
क्या कोई नर इतना निपुण ।
नारद मुनि संग मां शारदा बोली,

 है भारत वर्ष में एक पुत्र बालसुब्रमण्यम ।

जिसकी बानी इतनी मीठी ,
चाहे हो कोई भी सरगम।
16 भाषाओं में वह गाने गाता,
                       सभी है अति उत्तम।
40000 गीतों को देकर स्वर अति मधुरं।
नंदी पुरस्कार हो ,या फिल्म फेयर,
 पद्मश्री हो  या पद्मभूषण ,
उसके मुकुट में यह नग सारे हैं।
वर्ल्ड रिकॉर्ड का भी पुरस्कार ,
     इसका  मान बढ़ाये।
ब्राह्मण पुत्र यह  अपने भाई संग ,
पांच बहनों से राखी है बंधवाए।
सावित्री संग सात जन्मों की कसमें हैं खाई।
बच्चे पल्लवीऔर चरण को,
                             लाड़ भी खूब कराई।
 देश-विदेश में इसकी ख्याति ,
बाल युवा और वृद्ध ,
सभी हैं इसके संगीत साथी।
 हर आयू के गीत है गाता ,
हर नर नारी में संगीत फैलाता। 
सुनकर इसकी इतनी प्रशंसा, इंद्र हुए चंचल।
बोले देर क्यों करें चलो फिर,
बुलवाएं इसे स्वर्ग अविलंब।
देवताओं के इस स्वार्थ से देखो, 
सुरहीन हुआ भूलोक।
फिर भी देखो सदियों तक ,
हर पीढ़ी में इसके गीत रहेंगे अमर।
महकाया हर  घर ऑंगन में जिसने सुरों की शबनम।
सरस्वती के उस पुत्र को करती मैं शत शत नमन।।
                                                         ।।लोमा।।

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