दरवाज़े की घंटी

दरवाज़े की घंटी बजी तो, दिल थम सा गया ,ऐसा लगा जैसे साक्षात कारोना मानव रूप धारण कर, मुझपर महामारी का प्रकोप दिखाने के लिए दस्तक दे रही हो। 

घर मे हलचल मच गई मुझे हिदयतें दी गयी  । 

फिर मैंने भी मास्क लगा कर अनमने मन से द्वार खोला, देखा मेरी कामवाली बेचारी बुझी बुझी सी ,आसभरी निगाहों से मुझसे पैसे मांगने आई थी और बताया कि वो अपने गाँव वापस जा रही है क्योंकि  उसका कहना था "यहां पर हमारा कौन है,हम तो यहां जीविका के लिए आये हुए परदेसी हैं"।

और वहां उसका अपना घर है ,अपने लोग हैं।  

वो तो पैसे ले कर चली गई, परंतु उसके बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।



 

शरणार्थी ,प्रवासी, यह सब वह शब्द है, जिनकी तरफ हमारा ध्यान शायद ही कभी जाता हो, शायद आज भी मैं यह सब लिखने के लिए, प्रेरित ना होती, अगर मुझे उनकी तकलीफों का आभास किसी ने ना कराया होता।

सच है घर से कई कई किलोमीटर दूर रहकर ये लोग इस महामारी के समय में कितना कुछ सह रहे हैं ,

यह हम जैसे लोग Ac के घरों में बैठकर नहीं समझ सकते।

महामारी दुनिया के शरणार्थी और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की मौजूदा कमजोरियों को बढ़ा सकती है, इस संकट के समय हमें, अपने इन समूहों के साथ सहानुभूति एवं सहायक होना चाहिए ।

माना अभी सारा विश्व सिर्फ उन्हीं लोगों पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं, जिन्हें कोविड-19 से मरने का अधिक खतरा है।
दुनिया में 25. 9 मिलियन शरणार्थी और 41.3 मिलियन आंतरिक विस्थापित व्यक्ति है ।

कई प्रगतिशील देशों ने इस महामारी को फैलने से बचाने के लिए अपनी सीमाओं को बंद किया ,तो कई देशों ने अन्य देशों के नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया ।

कई आंकड़े हैं ,उपाय बहुत है ,जो कुछ वर्ग के लिए जरूरी है और कुछ के लिए दुखदाई। 

यहां पर मैं अपने देशवासियों के बारे में बात करना चाहूंगी जो कि राज्यों के आंतरिक लॉक डाउन से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं ,

प्रवासी सुविधाओं को सामाजिक समारोहों के समान मान अगली सूची तक बंद कर दिया गया है। जिसमें उनका भोजन और बुनियादी चिकित्सा भी शामिल है।

इस समूह में ज्यादातर, एक अनियमित स्थिति में रहने वाले लोग अक्सर अशिक्षित होते हैं, और कोई भी पहचान पत्र, या सरकारी पत्र ,ना होने के डर से चिकित्सा सुविधाओं में प्रवेश करने के लिए अनुच्छेद होते हैं । 

लोकडौन के चलते कई मजदूर वर्ग जो दूसरे राज्यों से जीविका मात्रा अर्जित करने के लिए आते हैं और ऐसे लोग जो कई ऐसे कर्मचारी हैं जो स्वयं के राज्यों से रोजगार के लिए और बेहतर जीवन व्यापन के लिए आते हैं उनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है ।

मन में घर पहुंचने की आतुरता है और अपनों से मिलने की आस है मजबूरी है कि वे लोग लॉग डॉन साधनों की कमी, आर्थिक अस्थिरता और प्रशासन की पाबंदियां की वजह से फंसे हुए हैं ।

वे लोग कई कई किलोमीटर चलते हुए ,अपना रास्ता तय करने के लिए भी बाध्य है, क्यों की न तो यातायात सुविधा है ना ही कोई और साधन ।

पर प्रशासन उनके इस मजबूरी को उल्लंघन का नाम दे रहा है ।

क्या सच में यह उल्लंघन है ?

सरकार को भी समझना चाहिए ये लोग कई कई किलोमीटर दूर अपने परिवार से अपने प्रिय जनों से दूर हैं ।

इनमें से कई लोग ऐसे होंगे ,जो अपने बच्चों से मिलने के लिए तड़प रहे होंगे ,जिनके बच्चे उनके लिए आंखे बिछाए बैठे होंगे ,कि न जाने कब हमारे माता-पिता आएंगे ,या कब हमारे भाई बहन, या कब, हमारी दीदी हमारे पास पहुंचेंगी।

 क्योंकि वह जानते हैं कि वहां पर वह बड़ी तकलीफ में है ।उनके पास में रहने के लिए ना छत है ,ना खाने के लिए खाना और ना सही मेडिकल फैसिलिटी ,सरकार को इन लोगों के प्रति बहुत कुछ करना चाहिए।

पर बेचारी सरकार भी क्या करे देश की आबादी और महामारी का प्रकोप,

शायद हम एक समय में एक साथ सभी को खुश नही कर सकते।

पर क्या ये सोच कर हम सिर्फ एक विशेष स्तर के लोगों के बारे में ही सोचेंगे।

ऑनलाइन में समान मंगवाते हैं,ऑनलाइन में पेमेंट करते है अपने अपने घरों में रहकर नही- नही ,इस ग्रीष्म में भी सर्दियों का आनंद उठाते हुए, हम शायद ही उन लोगों के बारे में सोचते है ,जो हमें समान पहुचाते हैं ,फिर उसके लिए उन्हें चाहे किसी भी लाल हरे या पीले ज़ोन से गुजरना पड़े।

कई लोग सरकार से गुहार कर रहें हैं कि उन्हें अपने घरों को भेजने का साधन मुहैया कराया जाये।

हमारे समाज में कई ऐसे वर्ग भी हैं, जिनको शायद हम नजरअंदाज करते हैं पर उनके बगैर एक भी दिन गुज़रना कठिन होता है।

दो दिन अगर कचरे वाली न आये तो घर मे असहनीय बदबू होती है फिर अपार्टमेंट कॉलोनी और रास्तों की क्या कहें।

पर फिर भी हमें ऐसा लगता है जैसे सारी महामारी फैलाने का ठेका इन्ही निचले वर्ग के कारण है ,शायद कुछ प्रतिशत सही भी हो ,पर क्या उनके बगैर हमारे जीवन मे खुशहाली हो सकती है? आज जो हम स्वस्थ हैं, सारे खाद्य समनों और रोज़मर्रा की चीज़ों से परिपुर्ण है जिसके चलते हमारे सोशल नेटवर्किंग भी निरंतर हमे ठेंगा,,👍यानी likes देते है,।

हम खाना बनाते है पोस्ट करते हैं, खुश होते है ।

स्वच्छ एवं सुख सुविधावों में शायद ही कोई समझौता करते हैं।

पर हम में से कितने लोग सुबह कचरे वाले को भोजन (बासी नही) देते है उसकी तकलीफ पूछते हैं या सामानों की डिलीवरी पर उस बन्दे को टिप और जरूरत का सामान देते हैं।

मैं जानती हूं ये शायद बहुत मुश्किल नही ,पर हम सभी डरे हुए हैं महामारी से उसके संक्रमण से और इसलिए शायद दिलों में ज़ज़्बात होते हुए भी बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं पर शायद हम थोड़े से, शुरुवात का सोच तो सकतें है।

आप भी सोच रहें होंगे की मैं ना जाने क्या लिख रहीं हूं, तो दोस्तों ज्ञान नही ,ज़ज़्बात बयाँ कर रहीं हू, मैं किसी भी सरकार या वर्ग को नही दोष दे रही हूं ,परन्तु मेरे विचारों को आप तक पहुंचने का प्रयास कर रही हूँ।

तो बात इतनी सी है कि सुविधाएं केवल एक ही वर्ग को नही मिलनी चाहिए ।

हमें अपना और दूसरों की सुविधाओं का ख्याल रखना चाहिए।

  • और सरकार ने जो कई सुविधाओं को हमारे इन सहयोगियों को देने का प्रयास किया है, समाज की कोशिश होनी चाहिए कि उन तक वे सुविधायें सुचारू आर पूर्ण रूप से पहुंच सके।

सोच मेरी बस यह है यारों,

दिया खुदा ने हर पल साथ,

मैं भी दूँ उन जरूरत मंदो को,

मेरा साथ और थोड़ी आस।।लोमा।।

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