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Showing posts from July, 2020

bachpan

बचपन अपना देख रही थी, तस्वीरों में खोज रही थी, हर पल, हर लम्हा, हर  वाकिये को जी रही थी , बचपन अपना देख रही थी। कई दोस्त थे अब भी संगी, कई हुए अब तो बेगाने,  फिर साथ बिताए थे जो लम्हे , वो अब हो चले अफ़साने। न कोई चिंता ,न कोई गम । बेफिक्री के आलम में रहते थे कदम। दोस्तों का साथ ,माँ बाबा का दुलार। यही तो था हमारे ,बचपन का राज। उसी बचपन को खोज रही थी, अपनी खुशियों को ढूंढ रही थी, तस्वीरों में कैद जो पल थे, उन पलों को जी रही थी, बचपन अपना देख रही थी, तस्वीरों में खोज रही थी।

तारीख़

मेरे प्रिय मित्रों अब तक आप सब ने मेरी लिखीं कविताओं को सराहा और  मुझे प्रेरणा दी । आज  आप दोस्तों के लिये में अपनी  लिखी एक कहानी ले कर आयी हूँ, आशा है मेरे इस कार्य को भी आप लोग  पढ़ें और  अपने विचारों को मेरी  प्रेरणा स्तोत्र बनाये।  धन्यवाद।।लोमा ।। तारीख आज सुबह से ही मेरा मन उदास था ,  रविवार का दिन था ,फरवरी का महीना  ,रजाई से उठने का मन ही नहीं कर रहा था । पर आज 14 फरवरी का दिन था । यों तो यह तारीख ,सारे जहां में वैलेंटाइन डे ,यानी प्रेमियों के दिन के लिए मशहूर है ,पर यह दिन मेरे लिए भी  यादगार ही है , जैसे हर याद सुखद नहीं होती, वैसे ही ,यह दिन मेरे लिए कयामत वाली रात की सुबह थी । आज इस बात को करीब करीब 24 साल बीत चुके थे,  पर हर साल यह तारीख मेरे जख्मों को कुरेद ही देती थी।  और इस ठिठुरती ठंड में भी ,  मै इस वाकिये को याद कर के  पसीने पसीने हो जाती थी।  कहते हैं वक्त हर जख्म को भर देता है,  पर उस नासूर का क्या जो हर साल रिस जाता है।  मन का पंछी पंख लगाए पता नहीं कितने ही साल पीछे चला गया था। लग...