bachpan
बचपन अपना देख रही थी,
तस्वीरों में खोज रही थी,
हर पल, हर लम्हा, हर वाकिये को जी रही थी ,
बचपन अपना देख रही थी।
कई दोस्त थे अब भी संगी,
कई हुए अब तो बेगाने,
फिर साथ बिताए थे जो लम्हे ,
वो अब हो चले अफ़साने।
न कोई चिंता ,न कोई गम ।
बेफिक्री के आलम में रहते थे कदम।
दोस्तों का साथ ,माँ बाबा का दुलार।
यही तो था हमारे ,बचपन का राज।
उसी बचपन को खोज रही थी,
अपनी खुशियों को ढूंढ रही थी,
तस्वीरों में कैद जो पल थे,
उन पलों को जी रही थी,
बचपन अपना देख रही थी,
तस्वीरों में खोज रही थी।
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