तारीख़

मेरे प्रिय मित्रों अब तक आप सब ने मेरी लिखीं कविताओं को सराहा और  मुझे प्रेरणा दी ।
आज  आप दोस्तों के लिये में अपनी  लिखी एक कहानी ले कर आयी हूँ, आशा है मेरे इस कार्य को भी आप लोग  पढ़ें और  अपने विचारों को मेरी  प्रेरणा स्तोत्र बनाये।  धन्यवाद।।लोमा ।।


तारीख

आज सुबह से ही मेरा मन उदास था ,
 रविवार का दिन था ,फरवरी का महीना  ,रजाई से उठने का मन ही नहीं कर रहा था ।
पर आज 14 फरवरी का दिन था ।
यों तो यह तारीख ,सारे जहां में वैलेंटाइन डे ,यानी प्रेमियों के दिन के लिए मशहूर है ,पर यह दिन मेरे लिए भी  यादगार ही है ,
जैसे हर याद सुखद नहीं होती, वैसे ही ,यह दिन मेरे लिए कयामत वाली रात की सुबह थी ।
आज इस बात को करीब करीब 24 साल बीत चुके थे, 
पर हर साल यह तारीख मेरे जख्मों को कुरेद ही देती थी। 
और इस ठिठुरती ठंड में भी ,  मै इस वाकिये को याद कर के  पसीने पसीने हो जाती थी।
 कहते हैं वक्त हर जख्म को भर देता है,
 पर उस नासूर का क्या जो हर साल रिस जाता है।
 मन का पंछी पंख लगाए पता नहीं कितने ही साल पीछे चला गया था।
लगता है मानो बस अभी कल की ही बात है , सोचते सोचते उस वेदना के असहनीय दर्द का एहसास हो जाता था, वह तानों का सिलसिला, वह साजिशों की रातें, 
और फिर एक दिन अचानक ही सब असहनीय हो गया था ,
ऐसा लगा जैसे मेरे  विवेक, धैर्य और विश्वास ने मेरा साथ छोड़ दिया हो।
उस रात जब मैं अपने ऑफिस से घर वापस आयी, तो मुझे एक अनजाने भय का आभास हो रहा था।

 कहते हैं हम औरतों को भगवान ने एक अजीब सी शक्ति से नवाज़ा है ,हमे हमारे साथ होने वाले गलत कामों का या, गलत इरादों का आभास पहले ही समझ में आ जाता है।

मेरे कमरे में मेरा देवर, ससुर ,सास और चाची साथ खड़े थे और साथ में ,
मेरा पति कहलाने वाला वह जीव खड़ा था ,जो न साथ देता था, ना हिम्मत, मुझे पता नहीं किस अनजाने डर का आभास हो रहा था  ,
कमरे में एक नजर डाली तो पाया मेरे अंतिम संस्कार का पूरा इंतजाम कर रखा था ।
 बस फिर क्या था रात के 11:00 बजने को आया था मैंने बाथरूम जाने का कहकर ,गुसल खाने में घुस गई ।
उस समय लगा अच्छी शिक्षा और आत्मविश्वास कितना जरूरी है और सबसे जरूरी है समय स्फूर्ति ,और मुझे भी कुछ अनुचित होने का संदेशा हो गया था ,लगा फिर समय मिले ना मिले मैंने अपनी मां पापा को फोन मिलाया ,पर शायद मेरे ससुराल वाले मेरी मंशा को समझ गए थे ।और जोर से दरवाजा पीटने लगे मैंने एस एम एस किया 'तकलीफ में हूं।'
 बस फिर बाहर आना पड़ा  ।
सब ने बहुत सुनाया मेरी आत्मा को निचोड़ कर कमजोर बनाया  ।
मैने अपने अधमरे विश्वास   के साथ एक बेकार सी उम्मीद के साथ,आशा भरी नजरों से उस बुत को देखा ,जो कि शायद अंतिम फैसले के इंतजार में था ।
जो बुत  बना खड़ा था ,जिसे ना तो अपने भाई का अत्याचार दिख रहा था ,ना मां का लांछन। एक पल को  लगा कि जी कर क्या करूंगी, 
जब कोई अपना ही नहीं पर उसी क्षण, 
उन धड़कनों की याद आई ,जो मेरे सांसो में थी, जिसके आने वाले कल का अस्तित्व, मेरे कोख में था।
 पता नहीं कैसे मेरी चेतना जागी, 
एक पल के लिए खुद को बचाने की मंशा जागी, 
और मैंने आव देखा न ताव, बस किसी तरह उन दरिंदों से खुदको बचाकर कमरे से बाहर की ओर भागी।
 रात का समय था पड़ोसी शायद सो चुके थे ,या फिर हर रोज के खटपट जान किसी ने द्वार खोलने का कष्ट नहीं किया था।
भला रात के समय कौन इन लोगों से पंगा लेता, जब दिन में ही बड़ी मुश्किल से  इन लोगों को झेलते थे ।
उस समय ऐसा लगा शायद यह पल आखरी हो, पर दिल में जीने की उमंग जाग चुकी थी ,
अपने अजन्मे बच्चे की किलकारीयों को सुनने की चाह थी ,एक बार पीछे मुड़कर देखा तो लगा मेरे ससुराल वाले ,नहीं अपितु यमदूत मेरे पीछे भाग रहे थे ।
किसी तरह बचते बचाते सड़क तक आ पहुंची ।

उस बदबू से जिसके आने के डर से ही मैं अपना मुंह ढक लेती थी ,उसी कचरे की पेटी के पीछे मैंने खुद को छुपा रखा था।

 रात के अंधेरे में मेरा साथी ,एक सोया हुआ कुत्ता था ,जो उस बुत से  काफी बेहतर लग रहा था ।
सामने कुछ टैक्सी वाले थे ,जो ठंड में आग सेक रहे थे ।
पर आज मुझे उनसे डर नहीं लग रहा था, शायद डर के मायने बदल गए थे।
 मैंने देखा वो लोग , जिन्हें मैने अपना माना और एक नही अपितु सात जन्मों तक के साथ की कामना की , वो बिल्डिंग के बाहर आए 
और इधर उधर देख कर , एक विजई हंसी के साथ वापस लौट गए ।
उनमें वो  बुत  बना इंसान भी था ,
जिसने साथ जीने मरने की कई कसमें खाई थी, जिसने मुझे ,उस अंधेरी रात में ,ढूंढने की कोशिश भी नहीं की थी । लगा जैसे औरत हर गम हर तकलीफ हर तंज़ सह सकती है अगर उसका जीवन साथी उसे प्यार करे विश्वास करे और सबसे महत्वपूर्ण उसे सुरक्षित आभास दिलाये।
खैर मुझे उस बुत से किसी भी तरह की कोई उम्मीद ना थी।
मै अपने सभी भगवानों को याद कर रही थी,
 या फिर कहें कि मेरी मां की दुआ काम आ गई।
अचानक गाड़ी की आवाज सुनी छिपकर देखा तो एक परछाई दिखी ,लगा शायद पापा हैं, पर फिर भी अंधेरे में हिम्मत नहीं हुई ।
उस समय कूड़े का  ढेर किसी चारदीवारी से ज्यादा महफूज लग रहा था ।
सिसकियाँ थीं कि कम ही नहीं हो रही थी ,
फिर जैसे ही अपने पापा  को बिल्डिंग के गेट पर देखा ,एक चीख के साथ बेहोश हो गई।
  आंख खुली तो  अपने आप को घर मे पाया ,
मां पापा  साथ में थे।
 मेरे होश  में आने और बच जाने पर खुश हो रहे थे ।
और भगवान का नाम स्मरण कर रहे थे।
 और मैं तब उनके  उस एहसास को बखूबी समझ पा रही थी ,आखिर मैं भी उसी दौर से गुजर रही थी ।
अपने कोख सहलाते हुए रो रही थी । 
इन सब में पता नही क्यों एक विश्वास था कि शायद वह बुत दिख जाए और थोड़ी फिक्र कर जाए।
पर न कोई आया और न फिक्र का अहसास मिला।

आज 23 साल बाद भी जब यादें अपनी उड़ान भरते हैं ,तो पता नहीं कहां से वही आंसू भी साथ देने आ जाते हैं ।
 वो एहसास जो ना जाने अपने दिल के कब्रिस्तान में  दफन कर दिए थे अपनी जड़ों को फैला अकुरीत हो जाते हैं, पर शायद  वेदना में बंजर हुए, मन मे झुलस जातें हैं।
  यही सब सोचते सोचते अचानक जब मेरी  नजर घड़ी पर पड़ी तब याद आया, 
आज मेरा बेटा ,मेरा विवेक, अपनी गर्लफ्रेंड से मिलाने वाला है।
 घर पर बहुत सी तैयारियां करनी है ,
मैंने अपने मन को समझाया ,
 यह दिवस फिर  हर साल आएगा ।
पर मेरे बेटे के लिए आज का दिन खास था।
 तो अपने विचारों को थाम कर,
 उन्हें वक़्त के पिटारे में रखकर,
 फिर एक बार एक नई सुबह का स्वागत करने,
 मैंने अपने आपको तैयार किया ,
यादों को ताला लगाया ,
जो कि ना चाहते हुए भी अगले साल खुद-ब-खुद खुलजाने वाला  ताला, जिसकी चाबी में हमेशा संभाल कर रखती थी ,
 पर ये जिंदगी हमें हर मोड़ पर हमेशा कुछ न कुछ सिखाती ही है और मैने तो जिंदगी से यही सीखा है  कि चाहे कल कैसा भी हो हमें अपने आज और आनेवाले समय को सुधारना है 
ऐसा नही की मैं 'सब 'भूल के आगे बढ़ गई 
पर मैने अपने उस 'सब' से बहुत कूछ सीखा है
अचानक से मेरी सोच को जैसे ब्रेक लग गया हो
उस रिमाइंडर  के  अलारम ने फिर मुझे एक बार मेरे बेटे विवेक के आज की तरफ मोड़ा
  उफ्फ ये  समय भी न जाने क्यों हमेशा उड़ते घोड़े पर सवार रहता है ,मेरी सोचों की लगाम थामे बढ़ता ही जाता है और हर पल मुझे जीने की नई उमंग और कर्तव्य का रास्ता दिखा ही देता है।
मैं भी अब तैयारियों में जुट गई ।तौलिया उठा गुसलखाने की तरफ बढ़ चली,
नई सुबह का स्वागत करने और ज़िन्दगी को नया मकाम देने।
आखिर मेरे बेटे के वैलेंटाइन का स्वागत जो करना था।।।लोमा।।।



Comments

Popular posts from this blog

सनातन

गुमनाम मत

करोना मे दोस्ती