प्रकोप

यह कथा प्रयागराज की है, जो मेरा ननिहाल है। हम सभी नानी की बरसी पर वहां गए थे। सुबह से ही हवा का बहाव तेज था, मानो प्रकृति ने कोई विशेष सभा बुलाई हो। मेरे नानाजी एक सफल पर्यावरण विशेषज्ञ रहे हैं। वह चिड़ियों की भाषा जानते थे और पेड़ों से संवाद करते थे। बचपन में हमें लगता था कि वह बस कहानियां बना रहे हैं, पर समय के साथ उनके ज्ञान का अनुभव हुआ।

शाम को दादाजी कुछ विचलित से दिखे। सोचा नानी की याद आ रही होगी, लेकिन अगली सुबह मैंने उन्हें बगीचे में पक्षियों से बात करते देखा। मैं चुपचाप उनके पास जाकर बैठ गई। उन्होंने कहा, "मिताली, पक्षियों ने मुझे बताया है कि जल्द ही एक तूफान आ सकता है। भारत के सभी प्राचीन वृक्ष एक महासभा करने जा रहे हैं।"

यह सुनकर मैं चौंक गई। दादाजी ने समझाया कि अक्षयवट, जो जीवनी संगम में स्थित है, ने यह संदेश भेजा है। इस सभा में देश भर के ऐतिहासिक वृक्ष – जैसे अनंतपुर का बरगद, चेन्नई का बेर वृक्ष, पंजाब का चिनार, श्रीनगर का बौद्धिक वृक्ष – सब भाग लेंगे। विषय है – प्रदूषण, वृक्षों की कटाई और घटती प्रजातियाँ।

मैंने पूछा, "दक्षिण और उत्तर के पेड़ एक-दूसरे से संपर्क कैसे करते हैं?" दादाजी बोले, "जैसे हमारे मोबाइल और इंटरनेट होते हैं, वैसे उनका भी एक नेटवर्क है। पक्षी उनके संदेशवाहक हैं।"

दादाजी की बातों पर मुझे विश्वास था। उन्होंने मुझे भी पक्षियों की भाषा थोड़ी सिखाई थी। तभी उन्होंने मुझे शांत रहने को कहा और हम तोतों की बातें सुनने लगे। तोते कह रहे थे कि अक्षयवट ने सभी पेड़ों को एक सभा में बुलाया है जहाँ वे अपने सुझाव और अनुभव साझा करेंगे।

मैंने पूछा, "फिर चिंता की बात क्या है?" उन्होंने कहा, "पेड़ मानवों से नाराज़ हैं। 5 जून, पर्यावरण दिवस से पहले वे चेतावनी देना चाहते हैं। उनका मानना है कि मनुष्य केवल दिवस मनाते हैं, पर असल में पेड़ों की देखभाल नहीं करते।"

दादाजी की बातें सुनकर मैं भीतर तक हिल गई। सच है – हम पेड़ों से जीवनदायिनी हवा, फल, फूल और दवाइयां तो लेते हैं, पर उनकी सुरक्षा नहीं करते। जब दादाजी बगीचे से उठे तो मैं भी उनके साथ कमरे की ओर चल पड़ी, लेकिन मन में डर बना रहा कि कल क्या होगा।

यह अनुभव मुझे एक ही बात सिखा गया – प्रकृति को सिर्फ सराहना नहीं, संरक्षण भी चाहिए। तभी हम प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर पाएंगे।

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