वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे खतों में अफ़साने थे, कुछ हमको सनाने थे कुछ उनको सुनाने थे। हर लम्हा उन अफसानों का आज भी जी जाते है| वो मोहब्बत वो कसक उस पल की हमें याद आते हैं| खतों में जो अफ़साने थे वो व्हाट्स एप्प में कहां, डेटा कहीं भर न जाये , ये सोच कर डिलीट कर जाते हैं| भूल जाते हैं प्यार के अफसानों को उन लम्हों को उन जज्बातों को| तब्दीली हर जगह हर उम्र की ख्वाहिश है, पर अब तो भावनाओं और जज्बातों ने स्माइली और मूड्स ने ले डाली है| पसंद आने पे ठेंगा नापसंदगी पर उल्टा ठेंगा| अजीब हो चली है चलन ,सोशल मीडिया ने जो घेरा है | नीली लाइन का साँपा पड़ा बहुतों को भारी , रिश्तों में हुई दरारे गलतफहमियां जो पाली। स्टेटस रखा जो हमने सबने व्यू कर डाला, दिल मे हुई तसल्ली दोस्ते ने सुध तो साधा। बनाये थे कई एफ बी पर दोस्त हमने भी| जिन्होंने हर जन्मदिन पर केक फूलों से न्यौछारा था | महक जिनकी न हम ले सके न मिठास का कोई तकाज़ा था । एक पल का वो जज़्बा था एक पल का अफसाना था। हमने भी रिमाइंडर लगा अपना फर्ज निभाना था । बिना कागज़ कलम के इस दिल का अफसाना सुनना था। न खातों का वो अफसाना था न जज़्बात पुरन...