मन का डर
जब भी कुछ पकाती हूँ,मन में डर रहता है।
जब हॅसती मुस्कुराती हूँ ,तब भी मेरे मन मे डर रहता है।
एक अजीब सी बेचैनी रहती है,
दिल खोया खोया रहता है ,
कहीं मेरे अपने देख मुझे डर न जाए ,ये डर हमेशा रहता है।
कल क्या होगा पता नहीं, ये बात पता ही रहता है।
हर छींक,थूक और संक्रमण का डर हमेशा रहता है।
हर मुमकिन करूँ मैं ये कोशिश,ध्यान मुझे यह रहता है।
मेरे अपने रहे संग सूरक्षित ,ये डर हमेशा रहता है।
कल की सोच कर कहिं ,आज न बिगाडूं ये बात मुझे पता रहता है।
बनूँ संबल मैं अपनों का ,बस ख्वाब यही अब रहता है।
हर सुबह हो यूँही स्वस्थ उज्वल,बस यही ख्वाब अब रहता है,
खुद को करूँ बुलंद इतना,बस यही ख्वाब अब रहता है।
अपनों का संबल बन सकूँ,बस ख्वाब यही अब रहता है।
संसार मे फैलें इस संक्रमण का ,डर मेरे मन मे रहता है।
सूनी सड़कें,प्यासी नदियां, बंजर धरती हो ना जाये ,बस डर मेरे मन में रहता है।
कर सकूं मेरे सामर्थ का ,बस ख्वाब यही अब रहता है।
डर मेरे मन मे रहता है,सब खोने से मन डरता है।

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आपके विचार मेरे लिए प्रेरणा स्तोत्र है।