समर्पण

 आँसू उसके मोती ना थे ,ना थे वो हर्ष दर्शाते।

 वो तो उसका दर्द था जो ,अश्रु बन बह जाते ।
ना ही उसको प्रीत मिला ,ना मिला कभी सम्मान ।
सबकुछ सह  कर करे वह अर्पण ,अपना सब कुछ मान।
पिया प्रेम न उसने पाया, सदा मदिरा में लिप्त ही पाया । 
मेहनत करके जीविका को, उसने अपना धर्म बनाया ।
ना रोजी ,ना रोटी ,ना छत ,ना धोती ,
ना थी वह निर्भर पिया पर, फिर भी उसको सब कुछ मान,
किया समर्पण पालन,पोषण,समझ इसीको विधी का विधान।
 यही रीत है यही दुर्गति हर अबला नारी की ,
अक्षर ज्ञान विहीन होने की, सजा उसे निभाने थी ।
काश गर में पढ़ पाती तो ,उसके मन भी आया ।
तभी तो अबला से सबला बनाने ,उसने बिटिया को पढ़ाया। 
पढ़ लिखकर जब हुई सबला, तब भी आँसू बहाए।
 ये मोती अब हर्ष उमंग के आस को है दर्शातें।
 सब कुछ सह कर वह अबला जो अबकी मुस्काई ।
इस अबला ने रीत बदलकर सबला है बनाई।।लोमा।।


MOSTLY EVERY LABOUR CLASS UNEDUCATED WOMAN OF OUR COUNTRY WHO DEDICATES HER EFORTS, MONEY AND LIFE TO HER HUSBAND, RECIEVES THE REWARD OF ABUSES AND HARASMENT  FROM HIM......LOMA.

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