दौड़
दौलत के पीछे ,जब भागता है आदमी,
खुद को ,खुद से जुदा ,करता है आदमी,
गैरों के गम पर हँसता है आदमी,
मानवता की आड़ में, खेलता है आदमी।
दैवी शक्ति ,प्राप्त है, इस आदमी को,
वरदान है दिमाग का दिया ,इस आदमी को,
करता जिसका उपयोग यह आदमी,
पर बहक जाता ,कभी कभी ,यही आदमी,
जब बनाता ,उस वरदान को ,अभिशाप यह आदमी।
आदमी ही है, जो करता दुःखी,आदमी को,
लालच का आता ,जब बुखार आदमी को,
तो तोड़ देता है, इंसानियत का थर्मामीटर भी यह आदमी।
स्वार्थ के चरणों मे, देता सत्य का बलिदान ,यह आदमी,
कर भला ,सो हो भला, भी कहता यही आदमी,
पर करता, दूसरों का , बुरा भी ,यही आदमी,
"सत्यमेव जयते "भी है इसी का नारा,
पर असत्य की हो विजय है इसकी यही कामना
हाँ यही तो है आदमी,
दौलत के पीछे, भागता यह आदमी।।लोमा।।
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आपके विचार मेरे लिए प्रेरणा स्तोत्र है।