नज़र







जब उस नज़र से हुआ सामना,

 तब बाबुल की कही बात याद आई ,

बोले थे बिटिया,
 "तू तो है मेरे नज़रों का नूर मेरी बगिया का फूल ,

तुझसे ही है मेरे गुलशन की हर खुशी है आई ,

पर बेटा ना भूलना तू यह बात ,

हर नजर नहीं होती ,पिता भाई जैसे ज़ज़्बातों के साथ ।

 इस दुनिया की रीत है,

 हर लड़की को समझा जाता खेलने की चीज़ है ,

ना घबराना इस रीत से, तुझे पाला भले ही मैंने प्रीत से, 

पर है खबर, मुझे तू नहीं है अबला ,

इस सदी की तू है दुर्गा,

 अन्याय ना सहना कभी तू,

 ना अपने अस्तित्व का करना कभी समझौता तू ।

निडर होकर नज़रों का करना तू सामना,

ना चाल,ना सृंगार ,ना ओढनी ,ना पेशा,

ना ही किसी बंधन ने, इस दरिंदगी को रोका ।

ये तो है प्यासे , है बस नज़र ही है प्यासी ,

हैवानियत इनमें बसी ,ना बहन है ना भाई।

 बिटिया रहना तुझे है ,इन्हीं दरिंदों की भीड़ में,

 हिम्मत तेरी है ,तेरी  शक्ति सदैव ही ।

नज़रों की भीड़ से ,तुझे रहना हमेशा सतर्क ही,

 थोड़ी सी सावधानी, थोड़ा सा आत्म बल ,

थोड़ा जो तूने दिखाया, समय पर बुद्धि बल ,

सब नज़रें झुक जाएंगी ,दरिंदगी यह घबरा जाएगी,

 कर अपने पर विश्वास तू,

 सदा रखना हिम्मत और बुलंद आवाज को अपने साथ तू।

 गर  जो लडी खुद के लिए तू,

ज़माना लड़ेगा तेरे लिए हरसू।

  बनना  दूसरों का सहारा तू , है मेरी आंखों का तारा तू, 

बाबुल की कही बात नहीं भूल पाई हूँ मैं,

 हर नज़र को अब समझ पाई हूं मैं ,

ना बदलेगा यह समाज, ना नज़रों का दरिंदगी,

 हमें संभलकर, बुलंदी से करनी होगी तब्दीली ,

यह आज की नहीं, यह तो है  रीत पुरानी,

 कन्या हो या नारी ,नज़रों  में सबकी  है आनी।

बाबुल तेरी बयानी हर स्त्री को है सुनानी,

नजरों को बदलकर बनानी नई  कहानी  ।।लोमा।।

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