दामिनी..DAMINI.....

वो एक लम्हा था जो गुज़र जाएगा,
अफसाना भी वो मिट जाएगा,
एक बुरे ख्वाब की तरह लोग भी शायद भूल जाएंगे,
फिर से एक बार हम अपनी सभ्यता निभाएंगे ,
साल भी गुज़र जाएगा,फिर से जब वो दिन आएगा,
हाथ मे लिए मोम, फिर एक बार दो आँसू बहाया जाएगा।
दिवस को दिया जाएगा एक नाम,
दामिनी  को भी एक सलाम।
अत्याचारियों का फिर भी कोई हल ना निकल पायेगा।
माँ के आंसू ,पिता का दर्द,न कोई समझ पायेगा।
उस लम्हे ने  दिया जो ज़ख्म ,वो कभी भर न पायेगा।
फिर जब कोई दामिनी पुकारेगी,
सोया हुआ समाज जाग जाएगा,
 पर वही थकन राजनीति की,
अंगड़ाई ले पलट कर सो जाएगा,
एक लम्हा  था जो गुज़र जाएगा,
अफसाना भी वो मिट जाएगा।।।लोमा।



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आपके विचार मेरे लिए प्रेरणा स्तोत्र है।

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