yaden.... यादें।
ठंड में ठिठुरता बुढापा सोच रहा था,
अपने सोये हुए बचपन के सपनों को खोज रहा था,
पाने और खोने के बीच गुणांक वो कर रहा था,
ठंड में ठिठुरता बुढापा सोच रहा था,
ठंड बढती गई वह सोचता गया था,
ठंड में कभी कभी ठिठुरता भी गया था,
पाया जो उसने उस पर भी सोचा था,
खोया जो उसने उसपर भी रोया था।
बचपन के ठंड की याद फिर उसको आयी थी,
बचपन के ठंड की जो बात याद आयी थी,
रज़ाई में छुपने की बात याद आयी थी,
वो पढने से जी चुराना,वो जल्दी से सो जाना,
बड़ों को सताना , दुलार उनका पाना।
इस दौर के ठंडे दिन कुछ और थे,
किताबों में लिपटे सपनो को संजोए थे।
उस ठंड के नौकरी पाने की ललक थी,
मिलने पर पैसा कमाने की कसक थी।
उस ठंड की हवा कूछ यूँ लहराई थी,
बचपन से बडप्पन की याद फिर से आई थी,
उस ठंड से एक बार फिर जो बुढापा ठिठुरा था,
आग जलाने से पत्ता भी कुम्हला था,
हाथ तपे फिर हुई याद ताजा ,
खुद के बच्चों से हुई ,फिर से आशा,
एक बार फिर बच्चों सा बन उनको पाला था,
तो इस बार दोस्तों सा , दिया उनको सहारा था,
उम्र ढली फिर से जो ठंड आया था,
उसी ठंड में बुढापा सोच पाया था,
क्या सोचा था उसने क्या उसने पाया था,
बीते हुए ठंड का हिसाब उसने लगाया था,
ठंड में ठिठुरता बुढापा सोच पाया था,
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