ढाई अक्षर
हाँ वो गुम थे ,मेरी सोच में दफन थे।
हाँ वो गुम थे।
मेरे अपनो की बातों में,नहीं थे।
साथी के ज़ज़्बातों में ,नहीं थे।
हाँ वो गुम थे।
रिश्तों की महक में वो नहीं थे।
बच्चों के ज़िद में भी वो कम थे।
इंसानियत में न जाने कँहा दफन थे।
इंसानों में अब तो वो कम थे।
हाँ वो गुम थे।
वो ढाई अक्षर जो गुम थे।
हर ज़ज़्बात के बयानों में वो कम थे।
बोली में अहसास में भी वो कम थे।
हाँ वो गुम थे ।
वो ढाई अक्षर,ही थे जो गुम थे।
हर एक को जोड़ने में जो सक्षम थे।
भीड़ में अपनों का भरम थे।
खुश रखने के वो पाबंद थे ।
हाँ वही ढाई अक्षर "प्रेम "के, गुम थे।।
।।लोमा।।
Best one ever
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