11 nov 2019


पूरा एक साल बीत गया । पिछले साल आज ही के दिन  मेरे परिवार वालों ने दोस्तों ने  और जानने वालों ने मेरे लिए बड़ी ही दुवाएँ की थी ।सब ने एक जुट हो कर मेरी हिम्मत बढ़ाई और हमें मनोबल दिया था।

पर समय कितनी जल्दी बीत जाता है,लगता है जैसे कल की ही बात हो। 

दीवाली का दिन था ।सारी तैयारियां हो चुकीं थी।पर अगर मैं  कहूँ की बड़ी  ही मुश्किल से सारी तैयारी की थी, तो गलत न होगा।

दीवाली हमारे परिवार में कुछ खास ही मनाई जाती है।

सारे पर्व तो जैसे आते और चले जाते हैं, बच्चों की पढ़ाई और पतिदेव की दूसरे शहर में नौकरी के कारण, कभी भी कुछ  मना  ही नही पाती थी। बस दीपावली ही एक ऐसा पर्व था ,जब सारा परिवार मित्र और रिश्तेदार हमारे घर मिलतेथे , और हम पूजा करते। अनेक पकवान और फिर देर रात तक गपशप होती थी।

पर पिछले साल मेरी तबियत कुछ ठीक नही थी ।पर मैं ठहरी ढीट ।सब काम सही से निबटा लिये, फिर खटिया पकड़ ली।

हुआ यों की   दीवाली के बात रात में तेज़ बुखार हो गया ।छुटकी ने पापा को चुगली कर दी "माँ की  तबियत आजकल आये दिन खराब रहती है आप वापस जाने से पहले डॉक्टर को दिखा दो "।और फिर क्या था इन्होंने अपने वापसी का टिकट कैंसिल करवाया और फिर डॉक्टर के चककर शुरू हुए।बात सर्दी से शूरू हुई बुखार और फिर खून की कमी और hysterectomy पर आ कर रुकी।

मुझे हॉस्पिटल बिल्कुल भी  अच्छा नही लगता था । दवाएं चाहे जितनी खा लूं ,हॉस्पिटल का वो पलंग मुझे हमेशा से कुछ खास पसंद नही रहा है।शायद इसलिए कि मैं दूसरों के सामने  खुद को कमज़ोर और बेबस नही दिखा पाती थी।पर क्या कर सकते है ।इसी डर के कारण मेरी डॉक्टर के, बार बार समझाने पर भी देर कर दी और  चींटी को पहाड़  बना डाला।

मैं ठहरी नेगेटिव ब्लड वाली A-veब्लड ढूँढने से भी न मिल पाता था। पति बेचारे इसी काम में जुट गए,

 बड़ी बिटिया जो दूसरे शहर में पड़ रही थी उसे बताया नही उसके एग्जाम  जो थे । हर बार उसका फ़ोन आता तो बड़े ही संभल कर बड़े इत्मिनान से बतियाते ताकि उसे कोई परेशानी न हो। छुटकी ने बड़े ही समझदारी से संभाल रखा था। बडा ही अजीब मंज़र था लगता जैसे  दिल खोल कर उससे बात करूं और मन हल्का कर लूँ, पर शायद यही ज़िन्दगी है, सब कुछ हमारी सोच के मुताबिक नही होता। हमें अपनों से कई बार अपने गम छुपाने पड़ते हैं, ताकि वे परेशान न हो जाये। पर उस समय मेरी सबसे प्यारी सहेली मुझ से मिलने आयी ऑपरेशन  के दो  दिन पहले हमने बहुत मज़ा किया ,इतने दिनों की थकान मिट गई मन प्रसन्न होता है तो शरीर की आधी बीमारी तो ऐसे ही खत्म हो जाती है।मुझे लगता है कि चाहे जितनी भी बड़ी मुसीबत हो  खत्म हो ही जाती है, बस हिम्मत और  सकारात्मक सोच होना चाहिए।

इस पूरे वाकिये में विनोद की हालत बड़ी खराब थी ।वैसे भी मुझे कुछ होने के डर से भी वो काँप जाते हैं। खून की कमी का सुन कर तो परेशान ही हो गए। उनके भानजे ने बड़ा ही सहारा दिया।विनोद ने  बड़ी ही मुश्किलों से  A-ve का इंतेजाम किया।

कई दोस्तों ने भी खूब साथ निभाया , मैं और विनोद हमेशा उनके आभारी रहेंगे। फिर खून का इन्तज़ाम  भी हो गया । तीन लोगों का  खून पीने के बाद 11 nov2019 को सुबह के समय सबकी दुआओं  ने और प्यार ने असर दिखाया मैं icu से वापस रूम में आ गई।

हम दोनो  बहुत खुश थे और साथ मे हमारे अपने भी।

हम दोनो जो कि एक रात पहले अजीब ही मंज़र में थे दोनो डरे हुए पर ,एक दूजे को हिम्मत बढ़ाते हुए ,अपने ज़ज़्बातों को छुपा रहे थे जानते थे हम कमज़ोर  नही पड़ सकते थे  ।

सब ठीक हो गया  था और फिर एक बार ज़िन्दगी वापस  अपनी पटरी पर थी और दिन बीतते गए ।

और आज पूरा एक साल हो गया।Thanks to my beautiful doctor .

आज फिर मैं अपने  सभी दोस्तों और प्रियजनो  का दिल से आभार प्रकट करती हूं। आखिर  मुझ खून की प्यासी की प्यास बुझाने में सबका बहुत बड़ा हाथ रहा है।

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया ।।।लोमा।।

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