पालनहार
अश्रु भरे नयनों में ,दिल रहा पुकार।
बेटी भयो इस जन्म में,
पर अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो,
मेरे पालनहार।
मेरी उमर न उसकी सीमा,ना मेरा कोई सम्मान,
वह तो इंसानों के भेष में,जानवर
जो करे मुझ पर प्रहार।
मेरि मय्या मुझे सिखाती, चाल चलन का पाठ।
भाई बाबुल देते हमेशा ,हिदायतें हर पग बारम्बार।
मेरा कसूर सिर्फ इतना है मैं जन्मी बिटिया ,
लाड़ जतन से मुझको पाले,मेरा पूरा परिवार।
आँख का तारा मैं तो उनकी,करते सब ढेर सा प्यार।
पर जो बाहर मैं जब जाऊँ,याद करे वो तुमको पालनहार।
चाहे मैं नन्ही गुड़िया, या हूं यौवना ,इससे ना उसको कोई सरोकार।
चाहे गरीब हूँ, या अमीर ,या अनपढ़ या अफ़सर बडी सरकार।
नज़र का भेद मुझे चीरता हर रूप जाती के पार।
फिर भी देखो ये समाज क्यों दोषी माने, मुझको ही हरबार।
घर की स्त्री को सुरक्षित रखता,बाहर करे रासलीला,
ओढे बेशर्मी की शाल।
देवी मान कर पूजी जाती, इस देश के हर आंगन में कइयों बार।
फिर भी देखो, होती लज्जित ,कैसा ये अन्याय।
लाल रंग जो प्रतीक सुहाग का, है भगवान को भी प्यारा,
क्यों तूने मेरे लिए ,अभिशाप बना डाला मेरे पालनहार।
न्याय की आशा में देखो,मेरे नयन है तरसे।
मेरे अपनों की पीड़ा को काहे नही तू समझे।
बदला युग है ,बदली रीत है,अब तो है समान अधिकार,
फिर क्यों तेरे संसार मे देखो,है अबभी दरिंदगी का राज।
नीच मानसिकता की उपज है,या संस्कारों की माया।
स्त्री को देख ,विचिलित होती इसकी पापी काया।
नहीं है आशा ऐसे समाज की ,ना ही बनना अबला है।
मेरी पुकार सुनो मेरे स्वामी ,मेरे पालनहर ,
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो मेरे पालन हार।।लोमा।।
Comments
Post a Comment
आपके विचार मेरे लिए प्रेरणा स्तोत्र है।