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Showing posts from January, 2021

गुरुर

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                                                    PC:ekcupt जब खुद को पाया रिश्तों के मोहपाश में , समझाया  फिर खुद को , अभिमान और स्वाभिमान का जोड़। पर जब बनी माँ तो समझी , आत्मा सम्मान और  प्रेम का जोड़। मातृता की मैं हारी ,जोड़   गणित न समझ पाती, उस वक्त मुझ को मेरी माँ की स्तिथि बखूभी समझ आती। कितनी दफा खुद को हारी, मैं को भी हरी। मुझको जीताने के खातिर , वह तो अपना सब कूछ हारी। मेरी जीत ही उसकी कल्पना ,मुझ पर ही वो न्यारी व्यरी। गुरुर बना उसने मुझको ,अपने स्वाभिमान तक को हरी। कई दफा तराजों में जब तोला मैने आत्मसम्मान को रखा पलड़ा हमेशा भारी मातृत्व  भार को। बड़ी स्वमलम्बी मैं समझती थी ,अपने आप को, स्वाभिमानी भी थी पर जब तक न समझ पाई थी माँ को। मोह नही मेरा गुरुर है ये तो मेरे बच्चे। इनको देखो मैं समझाती जीवन के चट्टे बट्टे। बड़ा फ़रख होता है अक्सर स्वाभिमान और अभिमान में। जीवन के गुर इस गुर को जो समझ पाया, सुलझ जाए हर मुश्किलात में।।लोम...

चांदी के वो तार

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  वो चाँदी के तार उलझे जो मेरे कंघे में आज, दिला गये अफ़साने कई याद, उम्र और उसकी गिनती आज। उम्र का आईना थे वो ,मेरे तजुर्बों के गिनतियां थीं वो। पहले श्याम अब श्वेत बन उलझे थे वो, चुपके से मेरे उम्र को बढ़ा गए थे वो, उलझते थे झड़ते थे ,कई दफा कंघे से टूटते थे वो, अब की बार जो उलझे वो,मन को पंछी बना उड़े थे वो। वो चांदी के तार उलझे जो मेरी कंघी में फिर जो आज, मेरे बचपन की यादों को भी संग लाये थे आज, घर मे  दुलारे थे हम ,माँ बापू के आंखों के तारे थे हम, हर जन्मदिन पर टॉफी और तोफों के हकदार थे हम। दो चोटी में , जो श्याम रंग के  रस्सियों सी थीं, बड़े इतराकर  फिरते थे हम। फिर उम्र बड़ी कुछ ,चुटिया हटा पोनि-टेल में घूमते थे हम। हर उम्र में केशों संग उलझते थे हम। आज बात कुछ और थी,  रंगों की देखों मौज़  थी, पहले जो काली घटाओं सी थीं, श्वेत अम्बर को दर्शातें हैं आज। हर तार का एक तज़ुर्बा और संग उनके नई चुनौती को समझाते हैं आज। उलझ कर फिर से वो चाँदी के तार । उलझे जो मेरे कंघे में आज। दिला गये अफ़साने कई याद,  उम्र और उसकी गिनती को आज। ।लोमा।।

खयाल

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 बीच राह मे जब खयाल आया, ज़िन्दगी गर रुक जाए ये सवाल आया। अचानक पाया खुद को कटघरे में, ज़िम्मेदारी, रिश्ते-नाते और कर्म के जंज़ीरों में। लगा अभी तो काम बाकी है, ज़िन्दगी और रफ्तार हर हाल में सांझी  है। थमने का न वक्त था न सुस्ताने की गुंजाइश है। निबटाने के लिए कई काम इस जन्म के बाकी है। कहाँ रुकती है ज़िन्दगी सफर अभी बाकी है, काम अभी बाकी है फ़र्ज़ अभी बाकी है। अपने ही खयाल को बेखयाली में उड़ा चली हूँ मैं। फिर एक नई कहानी में उलझ पड़ी हूँ मैं। जोश आया फिर उमंग के साथ, जस्बा और साहस एक नई कोशिश के संग, और हर सवाल के हल के संग।  फिर कुछ पल न सवाल आया न ज़िन्दगी रुकी, बीच राह में रफ्तार जो पकड़ी।।लोमा।।

कैसी ये आज़ादी?

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 देश है आज़ाद हुआ ,अंग्रेज़ो की गुलामी से। देखो जकड़ा फिर हमें ,अपनों की बेईमानी ने। कहाँ मिली आज़ादी हमको,ये तो बस सत्ता बदल गई । पहले वो अंग्रेज़ थे ,तो अब अराजकता हावी हो गई। कहाँ मैं आज़ाद  हूँ, अपने मन का करने को। हर दफ्तर में फ़ाइल हिलाने रिश्वतखोरी बढ गई। देना पड़ता अब भी लगान, टैक्स के रूप में, मेरी कमाई तो जैसे अफसरों की गोदभराई हो गई। घर बनाऊँ, या नौकरी पाऊँ देना पड़ता चायपानी, बची कुची कसर सारी देखो आतंकी मचा गए। धरती के स्वर्ग को देखो जहन्नुम बना गए। सोच से भी कहाँ मगर मैं अबभी आज़ाद हूं। अब भी देखो प्रान्तीयता ,बोली और जाती के जाल में हूँ। क्या  मिली आज़ादी हमको,मानसिकता और परिवेश में। अबभी लड़की अबला है ,दरिंदो के ख़ौफ़ में। काश की एक दिन ऐसा आये, आज़ादी का अर्थ बदल जाये। निडर ,निष्पक्ष और स्वछंद विचारों संग, हम अपना तिरंगा लहराए।।लोमा।।

हिंदी मेरी भाषा

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राष्ट्र भाषा पर हमें गर्व है, देवनागरी ही हमें पसंद है। सबसे सरल,शालीन और सहज ये, मेरी अभिव्यक्ति को सार्थक करे यह। पर फिर भी नही यह राष्ट्र व्यापी हैI भाषा की होड़ में रह जाती यह प्रांतवादी है। काश की एक दिन ऐसा आये, प्रान्त प्रान्त के सभी लोगों को, हिंदी भाषा सर्वोपरी हो जाये।।लोमा।।

आजादी

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                                                                                     PC:  @ekcupt  उड़ जा पंछी उन्मुक्त गगन के,  पिंजर बंद ना तू रह पाएगा।  तेरा जीवन मुक्त गगन का , कैद पिंजरे में तू न रह पाएगा।  मुक्त गगन में पंख पसारे,  धरती अंबर छूता जाए।  वृक्ष-वृक्ष पर ,डाली -डाली पर , चहकता फुदकता तू फिरता जाए,  हैं ऊंच -नीच ना भेदभाव के, ना तुझ में कोई अंतर।  धर्म जाति ना देश प्रांति का,  ना तुझको कोई बंधन । उड़ता जा तू फिरता जा,  देश प्रांत में चहकता जा,  विश्व शांति और राष्ट्र अमन  का , संदेशा तू सुनाता जा।  कैद न तुझको रख पाएगा,  पिंजरा भी एक दिन खुल जाएगा,  उड़ जाना तब तुम मुक्त गगन में , खुली चमन में अंबर छूने। मुक्त हो अपने मुक्त गगन में।।लोमा।।