कैसी ये आज़ादी?
देश है आज़ाद हुआ ,अंग्रेज़ो की गुलामी से।
देखो जकड़ा फिर हमें ,अपनों की बेईमानी ने।
कहाँ मिली आज़ादी हमको,ये तो बस सत्ता बदल गई ।
पहले वो अंग्रेज़ थे ,तो अब अराजकता हावी हो गई।
कहाँ मैं आज़ाद हूँ, अपने मन का करने को।
हर दफ्तर में फ़ाइल हिलाने रिश्वतखोरी बढ गई।
देना पड़ता अब भी लगान, टैक्स के रूप में,
मेरी कमाई तो जैसे अफसरों की गोदभराई हो गई।
घर बनाऊँ, या नौकरी पाऊँ देना पड़ता चायपानी,
बची कुची कसर सारी देखो आतंकी मचा गए।
धरती के स्वर्ग को देखो जहन्नुम बना गए।
सोच से भी कहाँ मगर मैं अबभी आज़ाद हूं।
अब भी देखो प्रान्तीयता ,बोली और जाती के जाल में हूँ।
क्या मिली आज़ादी हमको,मानसिकता और परिवेश में।
अबभी लड़की अबला है ,दरिंदो के ख़ौफ़ में।
काश की एक दिन ऐसा आये,
आज़ादी का अर्थ बदल जाये।
निडर ,निष्पक्ष और स्वछंद विचारों संग,
हम अपना तिरंगा लहराए।।लोमा।।
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आपके विचार मेरे लिए प्रेरणा स्तोत्र है।