खयाल
बीच राह मे जब खयाल आया,
ज़िन्दगी गर रुक जाए ये सवाल आया।
अचानक पाया खुद को कटघरे में,
ज़िम्मेदारी, रिश्ते-नाते और कर्म के जंज़ीरों में।
लगा अभी तो काम बाकी है,
ज़िन्दगी और रफ्तार हर हाल में सांझी है।
थमने का न वक्त था न सुस्ताने की गुंजाइश है।
निबटाने के लिए कई काम इस जन्म के बाकी है।
कहाँ रुकती है ज़िन्दगी सफर अभी बाकी है,
काम अभी बाकी है फ़र्ज़ अभी बाकी है।
अपने ही खयाल को बेखयाली में उड़ा चली हूँ मैं।
फिर एक नई कहानी में उलझ पड़ी हूँ मैं।
जोश आया फिर उमंग के साथ,
जस्बा और साहस एक नई कोशिश के संग,
और हर सवाल के हल के संग।
फिर कुछ पल न सवाल आया न ज़िन्दगी रुकी,
बीच राह में रफ्तार जो पकड़ी।।लोमा।।
wah wah
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