पछतावे के आंसू

 मेरे प्यारे मित्रों आप सब की दुवाओं का कमाल है कि मैं सही सलामत हूँ, ये मैं इसलिए लिख रहीं हूँ कि आप लोग मेरे नए पोस्ट को पढ कर व्याकुल न हो जाओ ।

मंशा सिर्फ  इतनी  थी कि  अपनी कलम से मैं उस वेदना को   बता सकूँ जिसका जिक्र भी हम नही करना चाहते 

पर शायद ज़रा सी सावधानी लेने से हम अपने इस परिस्तिथि का सामना करने से बच सकते हैं।।


अश्क नही थमते,सांसे थम रहीं है,

मेरी ज़िंदगी तो देखो ,जैसे रुक रही है।

कल तक जो था इक हकीकत ,कल अफसाना हो चुकेगा।

सोचा था ना ये मंज़र ,हम को भी यों दिखेगा,

रेत, मुट्ठी से देखो फिसलता जिस तरह से,

सांसे भी देखो उखड़ रहीं है ,बस अश्क बहते बेवफा से।

कई काम थे बाकी, करने को इस जहां में,

हर लम्हा जिया था मैंने, ज़िन्दगी के भरम में।

रहता था बेपरवा ,सोचा था बड़ी सरल है,

हर काम को टाला था कल पर,वो कल ही अब किधर है।

अपनों से साथ छूटता, दिखता मुझे हरपल है।

सालों की देखो ज़िन्दगी ,बस दो चार पल में गुम है।

महामारी के चपेट में हर घर आ रहा है,

फिर भी देखो तो, ये मंज़र  से ,कोई भी ख़ौफ़ज़दा कहाँ है।

सांसों की डोर को जब टूटते हुए पाया,

अपनों संग हो रही बेचारगी को समझ पाया,

रोका बहुत था सबने,दावत में देखो न जाना,

पर एक साल से मजबूर दिल को,देखो मैं संभाल न पाया,

लोगों से देखो मिल कर बधाइयां भी दे डाली,

दावत में देखो खाना भी खूब खाया,

मास्क और सैनिटाइजर  गर्दन और ज़ेब में थे,

दोस्तों की मानी ,देखो  समझदारी को घर छोड़ आया।

आज इन अश्कों को बहते देख रहाँ हूँ,

अपनी करनी पर ,जान गवां रहाँ हूँ।

मैं तो मुक्त हो जाऊँगा,पर अफसोस ये कर रहाँ हूँ,

मेरे अपनो के भविष्य को अंधकार मैं कर रहाँ हूँ।

अश्कों में अपने देखो मैं  ,सबकुछ गवां रहाँ हूँ,

मेरे अपनो को मझधार में ,देखो छोड़ रहाँ हूँ,

गिनतिकी सांसों को पलपल तरस रहाँ हूँ,

छोटी सी लापरवाही से देखो ज़िन्दगी हार रहाँ हूँ।

कल के कर्म से देखो कल को भी खो रहाँ हूँ।

पछतावे में देखो पल पल मैं मर रहाँ हूँ।।लोमा।









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आपके विचार मेरे लिए प्रेरणा स्तोत्र है।

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