छह इंच की दुनिया
सारे काम वक्त पर करती थी।
डिजिटल इंडिया का जोश बड़ा,
हाथ मे अनरोइड का फ़ोन लगा,
अब ना चलने का सोचती हूं।
वक्त पर काम भी न करती हूं।
ऑनलाइन सभी काम हो जाते हैं,
बैंक हो या बाजार सभी घर पर आते हैं।
मसला ऑनलाइन का नही ,डिजिटल इंडिया का दोष नही।
बिल भर कर जब उठती हूँ,
सोशल मीडिया दस्तक देता है।
फिर उसमें जो घुस जाती हूँ,
डबल टिक ,नीला टिक और ठेंगें पर अटक जाती हूँ।
मोहपाश ऐसा की घर की सुध न लेती हूँ,
बच्चे मांगे आलू पूरी ,मैं फटाफट खिचडी परोस देती हूं।
कामवाली करोना की दया से अब घर मे नही आती है।
फिर भी देखो ,मुझको हर काम में लापरवाही है।
काम निबटा कर ,देखो फिर से दुनिया की सुध लेती हूं।
घर पर चाहे जितने हो काम, छोड़ Anupama देखती हूँ।
सैर सपाटे का तो शायद मतलब भी मैं भूल गई,
करोना का बहाना कर के अपने फ़ोन संग मैं सब कूछ भूल गई।
छह इंच में दुनिया की खबर लेते हुए ,अपनी दुनिया से बेखबर हो गई।
उन दिनों को याद करके ,insta के पोस्ट में खो गई।
अपने फ़ोन संग रहते रहते मैं तो चलना भूल गई।
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