विदाई बगैर शादी
बिटिया भयो पराई, रीत है पुरानी ,
बदले समाज और युग ने बदली ये चाल पुरानी
बेटी हो या बेटा अब तो भयो परायो
ना शहर से, ना घर से ,वे तो देश से ही हैं जाते ।
दूरी न फिर भी कोई ,देखो दूरी दिलों में लाते।
योवन में देखो पहले ,पढ़ने को वो है जाते ,
आधे अधूरे देखो, बचपन को वो है बिताते,
ऊँची बहुत है मंजिल, यह हम बचपन में है उन्हें सिखाते ।
फिर तेईस की उम्र में वह हमें यही है समझाते।
तालीम हो या नौकरी ,घर से नहीं है मुमकिन ,
अब देखो पंछी फुर्र से ,पिंजरे से उड़ ही जाते ।
सपना लिए आंखों में ,दिल में टीस जुदाई का ,
हर एक को देखो वो पल ,दुखद तो कर ही जाए।
सोच बनाए आधुनिक, फिर भी दिल को कैसे समझाएं
विदाई बगैर शादी ,अब रीत यह प्रचलित हो जाए।
फिर क्यों यह मन ,बिछड़ने पर ,उदास होता जाए ।
बदलते दौर और परिस्थिति, हम को मजबूर बनाते ,
मां-बाप के थे ,जो सपने, अब बच्चों के ख्वाब बन जाते।
वीसा और छुट्टियों के ,घेरे में कैद कर जाते,
दिल मचलता जब है ,फोन हम उठाते,
पर समय का अभाव बता ,बच्चे रोक लगाते ।
उनका भी हाल अजब है ,दिल में प्यार और वक्त कम ही कम है पाते।
फिर भी दिल से देखो ,दिलों का राह वो बनाते।
दूरी कोई भी देखो ,जुदा हमको कर ना पाए।
दूरी न फिर भी देखो दूरी दिलों में लाये।।लोमा।।
Wow superb very touching with our present state
ReplyDeleteWishing her very bright future and lots of luck...
ReplyDeleteLet her fly ....
Love
VeeNaa