अंजाम

ना कंधा मिलेगा ना जनाज़ा उठेगा,मौत ऐसी होगी जिसमें ना ज़मीन भी मिलेगा।

अग्नि से वंचित ,गंगा में न अर्पित,कब्र भी कहाँ देखो अब तो यहां मिलेगा।

खेल ऐसा हमसे ,ये देखो खेल रहा है ,अब दोस्त यारों को न अंतिम दर्शन भी मिलेगा।

मौज़ में  इंसान ने देखो,हर नियम को तोड़ा है ,

अब हम को देखो अपने ही कर्म का दंड है मिलेगा।

मास्क लगाना देखो ,कितना सरल था उपाय ,

 पर नाक और मुह को छोड़ गर्दन पर थे लटकाये।

दूरी रखना था ज़रूरी, पर दिल को न रोक पाए,

हर त्योहार और समारोह में देखो ,हम नज़र आये।

करनी का है ये  फल तो ,भुगतना हमे पड़ेगा,

छह गज़ की ज़मीन को भी सांझा करना पड़ेगा।

गर मान जाते नियम  हम, मास्क लगा दूरी हम बनाते।

दो चार महीनों तक घर से भी कम ही जाते।

सलामत रहते और  कल का सहर देख जाते।

समझ जाते गर इस तथ्य को ,

सांसो के चलने के लिए ,कदमों को रोक पाते।

ये रोग है अजूबा, खुद को तो डूबाता है ,

संग अपनों का भी देखो ,दुर्गत ये कर जाता है।

फैला ये सारे विश्व में, मिलजुल कर फैलाया है।

हर  शख्स को देखो,खुद में बदलाव अब लाना है,

अपने लिए नही ,अपनो के लिए ,सतर्क हो जाना है।

अंजाम से डरेगा,फिर सतर्क वो रहेगा,

तभी देखो सबको राहत कुछ मिलेगा,

संक्रमण का फिर खौफ कम लगेगा।

जिंदा हर शख्स रहेगा ,और फिर से महफिलों में सजेगा।

कुछ  समय के बंधन से,नियमों का पालन जो करेगा,

फिर हर दोस्त यार  संग, सदा गपशप वो करेगा।

भविष्य के सपने भी बुनेगा ,और कुशल वो रहेगा।।लोमा।।




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