मुई फ़ोन



 ज़िन्दगी फ़ोन की मोहताज़ हो गई।

अपनों से ज़्यादा ,गैरों की हमराज़ हो गई।

हाथों में फ़ोन ,कानों में ईयर फ़ोन,

बस यही सबकी दास्ताने जहाँ हो गई।।

पहले मिलते थे दोस्त, तो गपशप होती थी,

अब तो हाथों में बैरी दुश्मन ये फ़ोन हो गई।

ग्रुप्स बने कई, गपशप हुई बड़ी,

हर एक वाकिया फिर तो सब मे आम हो गई।

खाने की तारीफ सुनने को मैं  बेकार,

पर सनम पहले मीडिया में करे  उसका प्रचार।

आईने से पहले फ़ोन में सेल्फी का दीदार।

काम हो कोई भी, अब फ़ोन कर गई।

देखो मुझ से पहले मेरी खबर दुनिया मे फैल गई।

ज़िन्दगी फ़ोन की मोहताज़ हो गई,

अपनों से ज़्यादा गैरों की हमराज़ हो गई।।लोमा।

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