यादों के पन्नों से....


 


यादों के पन्नों से ,कुछ पंक्तियाँ जो याद आईं।

वो हसीन मंज़र याद आया, वो हर लबों कि लाली याद आयी,

याद आया वो बागों में मिलना , इंतज़ार वो उनका करना,

मनवाने के लिए रूठना ,और फिर गले उनका वो लगाना,

था अजीब दौर वो भी,जब मिलते थे जुनून से,

गले मिल कर, जब हम खुशियाँ  बिखेरते थे दिल से,

घर कोई जब भी आता ,पानी पूछते थे पहले,

अब तो हाथों में सैनिटाइजर देते हैं पहले,

अपनायित में भी देखो ख़ौफ़ छुपि हुई है दिल मे।

मिलने पर किसीके ,अब हाथ नहीं है बढ़ते,

कुशल मंगल है जान कर , अपनायित फिर दिखाते।

दूरी हम बना कर,अपनायित को जताते।

यादों के पन्ने फिर ईक बार जो फड़फड़ाये

याद हमे वो उस सुबह की दिलाये ,

जब हलचल किचन में रहती थी उठते से,

तैयार होते थे बच्चे, और बड़े  भी हड़बड़ी में अन मने से।

टिफ़िन भी पैक होता था, लंच भी बन जाता था ,फौरन से,

घर पर  अब देखो, सुबह का माहौल बडा प्यारा सा,

अब न बच्चों को जल्दी है ,ना बड़ों में दफ्तर का समा सा।

 अब किचन में ,लेकिन ,केवल सुबह की है राहत ही,

पूरे दिन की है हलचल,और पकवानों की फ़रमाईश ही।

यादों के पन्नों से उस पन्ने पर जो नज़र ठहरी,

आँख भर आयी ,और  टीस दिल मे उट्ठी।

याद उस  की आयी ,जो थी मेरी साथी,

न आने पे करती जिस पर गुस्सा,

और देती थी देर से आने पे जिसे गाली।

कामवाली मेरी मुझको याद बहुत आती,

उसका वो झटपट से, घर को चमकाना याद आता,

बातों ही बातों में बर्तनो का  धुल  भी जाना याद आता।

एक दिन की छुट्टी, भी जिसकी गवारा नही थी,

अब तो घर में उसकी एंट्री हीनही  थी।

कई अनगिनत थे पन्ने मेरी यादों के ।

जब महफ़िलों में जम कर  मस्तियां हमने की थी।

ज कर थे जाते ,लाली लिपस्टिक लगाते।

रविवार को चाट का चटकारा भी लगाते।

पन्नों की फड़फड़ाहट ने हमे  फिर जगाया।

यादों की किताब बंद कर ,असलियत से तआरुफ़ कराया।

मुँह पर मास्क ,हाथों में सैनिटाइजर,दूरी है ज़रूरी,
ये हम को बताया।

वेक्सीनेशन लगाकर भी दूरी ज़रूरी ,मास्क भी ज़रूरी ये हम को बताया।

याद फिर दिलाया,आगाह फिर कराया।

यादों के पन्नों ने फिर इक बार यतार्थ को दोहराया।।लोमा।।।



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आपके विचार मेरे लिए प्रेरणा स्तोत्र है।

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