बेनाम प्यार
इस आधुनिक समाज को जागृत करने के लिए अब तो हमारी फिल्म इंडस्ट्री भी अपना प्रयास कर रही है ।पता नहीं क्या सही है क्या अप्राकृतिक है । जो हमारी समझ में आए, वही दिल मानता है बाकी सब के लिए हमारा मन, विरोध करने के बहाने सोचता है और गलत करार देता है/
तो चलिये आप को वो कहानी सनाती हूँ जब मैं 8 साल की थी, अभी के उम्र की गणना न करते बैठे जनाब ,मेरी कहानी पर ध्यान दे ,अब तो उम्र इतनी हो चली की बाल भी पक गए ।
बात उस समय की है जब मैं अपने घर पर खेल रही थी/ और हमारी पड़ोस वाली काकु आयी हुई थी । ये उनके रोज़ की ही दिनचर्या थी ,आखिर आज की तरह तब सेल -फ़ोन्स का आविष्कार नहीं हुआ था ,डब्बे मे जकड़ी दोस्ती न थी, दोस्त गले मिलते थे ,बेखोफ आते जाते थे ,तब लोग एक दूसरे के दुख दर्द और खुशी मिल कर बाटते थे ।
तो काकु इस समय घर पर थी इसका मतलब था कोई खास बात है जिसे 'किसी से न कहना' का ’टैग ’करते हुए सारे मोहल्ले मे फैलाती थी । यानि आज का सोशल मेडिया,
भी ऐसे हुनर के आगे घुटने टेक दे /
मैं भी आंगन में खेलते हुए अपने संपूर्ण श्रवण शक्ति को मां और काकू की गपशम में अंकित करती थी ।
तभी सुना की प्रभा यानी हमारा प्रभास घर से भाग गया है।सुन कर बड़ा दुख हुआ।
बात दरअसल ये थी की प्रभास जिसे हम सभी प्यार से प्रभा बुलाते थे, अपने घर से भाग गया था ।
मै इतनी बड़ी नहीं थी की उन की बातों का मतलब समझ पाऊँ /
बात खेल खेल मे निकल गयी मगर बाल मन हमेशा सोचता ,की आखिर क्या कहानी है ,आखिर क्यों लोग फुसफुसाते हैं और हमारे सामने बातें करने से कतराते है /
खैर दिन बीतते गये हम सभी बच्चे प्रभास को भूल से गए / कुछ समय तो लगा ,क्यों की, वो हमारे बच्चों के लिए एक फुल एंटेर्न्तैंमेंट पैकेज था /चाहे कोई भी पंडाल हो या गणेश उत्सव या नवरात्र बस डांस मतलबप्रभास ।बेचारा हमारे ज़िद करने पर खुशी खुशी पूरे मन से नाचता ,और ऐसा नाच की हीरोइनों को भी मात देदे /और फिर घर जा कर खूब मार खाता /
प्रभास पटेल अंकल का छोटा बेटा था । सब कहते थे की पटेल आंटी को दो बेटों के बाद बेटी की बड़ी खाहीश थी ।
प्रभास जब छोटा था तब आंटी उसे बड़े शौक से फ्रॉक्स पहनाया करती थी और हम सब उसे प्रभा कह कर छेड़ते थे । समय गुजरता गया प्रभास के अंदर की प्रभा भी विकसित होने लगी । वेषभूषा से लड़का पर हावभाव लड़कियों सा था।
दिन बीतते गए हम सभी बच्चे जैसे अपनी ही दुनिया में मगन हो चले आज पूरे ९ साल बाद अगर काकू नहीं आयी होती, और उनके मुँह से प्रभास का नाम न सुना होता तो शायद मुझे ये सब कभी याद न आता। खैर काकू के जाने के बाद धीरे से माँ से उनके आने का कारण पुछा पर मन कह रहा था कि पूछें प्रभास की क्या खबर है।मां ने थोड़े संकोच से बताया की प्रभास पूरे ९ साल बाद घर आया है ,पर अब भी वो लड़कियों सी ही हरकत करता है, उसके बाप के बीमारी की खबर पर आया था /माँ के मरने पर तो उसका पता ही नहीं था/ बेचारी पलंग पर पड़ी पड़ी उसे ही याद करती थी /
यानि वो सब की खबरे रखता था.
उस दिन मन बड़ा बेचैन था, लगा उसके घर जाकर उसकी खैर खबर लेना चाहिए आखिर मेरे बचपन का साथी था। .
खैर माँ ने तो साफ़ शब्दों में मना ही कर दिया था। उस दिन मै कॉलेज के लिए बस स्टॉप पर खड़ी थी की अचानक से एक जानी पहचानी आवाज़ में अपने नाम को सुन कर पलटी ,देखा प्रभास खड़ा था। मेरे मन ने ना चाहते हुए भी उसके वेशभूषा और बोलचाल का एक्सरे कर लिया , वो शायद समझ गया, अब वो बहुत बड़ा हो गया था, एक युवक के शरीर में स्त्री मन के साथ थोड़ा अजीब लग रहा था। मेरा मन कॉलेज जाने का बिलकुल न हुआ,सोचा चलो आज अपनी सारी उत्सुकता ख़तम करलूँ। मैंने ख़ुशी से उससे हाथ मिलाया और उसने भी ख़ुशी ज़ाहिर की और पूछा 'क्या थोड़ा समय निकाल सकती हो 'मै तो जैसे इसी इंतज़ार में थी.
मेरे पास पूरा दिन था यानि शाम के ६बजे तक ,जो की मेरे घर वापस आने का समय होता था ,सोचा आने के बाद माँ को सब बातें बता दूँगी, अभी तो चलते हैं। वैसे भी आज कॉलेज में मन तो नहीं लगेगा / हम दोनों पास के एक रेस्टॉरंट में बैठ गए/
पहले चाय और नाश्ता आर्डर किया फिर थोडी सी औपचारिक बातों में लग गए दोनों ही जानते थे की हम उत्सुक है अपने९ साल की ज़िन्दगी के बारे में जानने के लिए.
उसने बोलना शुरू किया मिनी पूछोगी नहीं इतने साल कहाँ था, कैसा था ,अब कहाँ हूँ। मैंने आँखों में हज़ारों सवाल लिए हाँ में सर हिलाया /
वो थोड़ा रुका फिर बताना शुरू किया ,ऐसा लग रहा था जैसे वो भी किसी सुनने वाले के इंतज़ार में था ,उसके घर के माहौल का मुझे पता था। वहां सब नाराज़ और खिल्ली उडाने के लिए ही थे ,कोई उसे समझता नहीं था ,बस एक मां थी जो कई साल पहले गुज़र गई और तब प्रभास नहीं आ सका था ,फिर न जाने अब क्यों आया था..
मैंने पुछा इतने सालों बाद क्यों आए हो। वो थोड़ी देर के लिए चुप हुआ जैसे अपने अंदर के कोलाहल को समेट रहा हो ,जैसे चीखना चाहता हो पर आवाज़ साथ न दे रही हो ,फिर उसने अपनी चुप्पी का बांध तोडा। अपने फ़ोन पर एक तस्वीर दिखाई देख कर बहुतअच्छा लगा india got talent में उसे विजेता का पुरस्कार मिला और उसके फन को पहचान कर उसको फिल्मो में कोरियोग्राफर बनने का मौका भी दिया गया मुझे बहुत ख़ुशी हुई ,बहुत सराहा और पुछा की ,क्या घर पर सब को बताया उसने। उसने होंठों पर एक फीकी सी हँसी थी जैसे कहना चाह रहा हो ,की क्या तुम मेरे बारी में नहीं जानती। मैं भी अपने ही सवाल पर हैरान पड़ी. उसने बताया वह बेले डांसिंग में निपुण हो चला है और कई तस्वीरें भी दिखाई बातों बातों में उसने कई बार विलास का नाम लिया ,आखिर मैंने भी पूछ ही लिया ,की आखिर ये विलास कौन है ,उसने बताया ये एक लम्बी कहानी है -' क्या तुम्हे वो गणेश चतुर्थी वाली रात याद है.' मैंने कहा कैसे भूल सकती हों उसके बाद तो हम कभी मिले ही नहीं .उसने भी हाँ में सर हिलाया वो मेरे बचपन का दोस्त था और हर बात मुझसे कहता था और शायद मेरे बचपन का पहला क्रश भी वही था।
वो ये बात नहीं जानता था शायद मैं भी भूल चुकी थी आखिर बचपन में हम नादाँ होते है और बड़ी जल्दी से अपने दोस्त भी बदलते है। खैर उसने बताना शुरू किया की कैसे उस दिन शोले की बसंती वाले डांस के बाद उसके पापा ने उसकी पिटाई की थी। उनका कहना था की वो उनके जीवन का कलंक है. उसने कहा की इसी वजह से उन लोगों ने मोहल्ला भी बदल लिया था. पर मेरे अंदर की प्रभा न जाने कब ढीठ हो गयी जगह बदलने से भला कभी मन बदलता है मैं चुपके चुपके से बेले डांस करता लड़कियों के कपडे पहनता उनके जैसा साज सिंगार करना मुझे पसंद था घर पर बहनो के सामन कई बार गायब कर के उनका इस्तेमाल करने लगा था पर बापूजी इसे बीमारी समझने लगे और अपने हिदायती मित्रों और रिश्तेदारों के मशवरे से मुझे कई डॉक्टरों के पास ले कर गए।
पर इलाज तो रोग का होता है मन की भावनओं का कैसा इलाज ?
मै थक गया था रोज़ पीटना जलीकटी बातें सुनना और तिरस्कृत होना ,बड़ा ही अजीब महसूस करता था ,ऐसा लगता जैसे किसी पिंजरे में कैद पंछी हूँ। फिर एक रोज़ जब स्कूल के लिए निकला तो विलास से सामना हुआ उसे देख कर लगा, मेरा कोई अपना है ,मेरे जैसा है उम्र में मेरे से बड़ा था शायद वह २६ का होगा और मई १३ साल का पर दिल के तार जुड़ने के लिए उम्र की मोतियों की ज़रुरत नहीं होती हम मिलने लगे वो मुझे समझने लगा फिर तो स्कूल जाना मेरे लिए बस इक बहाना बन गया मैं निकलता स्कूल के लिए था और उसके संग बैठ कर अपना समय बीतता गया। मैं खुश रहने लगा पर जानता था कि इक दिन स्कूल से फ़ोन आएगा और तब हमारे घर पर विस्फोट होगा।
वही हुआ जिसका डर था। विलास मुझे बेले डांस भी सिखाता था. अपने साथ कई जगहों पर लेकर भी जाता था। घर पर सब पता चल गया,सबने बहुत डांटा ,पिटाई भी हुई मेरा रो रो कर बुरा हाल हुआ था ,वो इस लहजे में बता रहा था की सुनते हुए मुझे भी रोना आगया। वो थोड़ी देर के लिए रुका फिर से बताना शुरू किया - 'अगले दिन जब मेरे पापा के साथ मैं स्कूल पहुंचा तो देखा वह गेट के पास खड़ा था पापा उसे नहीं पहचानतेथे। मुझे गेट के अंदर तक छोड़ कर वो चले गए ,मैंने मुड़ कर देखा विलास वहीँ खड़ा परेशान हो रहा था। मैं वापस मुडा और उसका हाथ पकड़ कर ,चल पड़ा ,मैंने मन बना लिया था. रात को बहुत रोया था.. और सोच लिया था की अब घर नहीं जाऊँगा ,चाहे विलास मदद करे या नहीं मुझे घर नहीं जाना था.
मैं विलास का हाथ पकड़ कर चलते जा रहा था। विलास भी शांत था ,शायद मेरे घावों की पीड़ा को समझने की कोशिश कर रहा था।
आखिर मै थक कर के सड़क किनारे बैठ गया पता ही नहीं चला कितने दूर आगया था। पर शायद मन पर लगे घावों का दुःख पैरों की थकन से ज़ादा थे. मै रुका मैंने रोना शुरू किया था। विलास ने बड़े प्यार से समझाया मुझे हौसला दिया और अपने घर ले कर गया मैं शायद बहुत ही थक चुका था। विलास के पलंग पर जा कर सो गया था .
प्रभास बोलते बोलते रुक गया. मेरी तरफ देख कर मुस्कुराया जैसे पूछ रहा हो कितने सवाल हैं मिनी ?
मैं तो बस उसके बीतेसालों को जी रही थी , मैंने पुछा फिर क्या हुआ, पर इतने में बैरा आया ,तो हमने उसे देखा की क्या है वो बोला खाना आर्डर कर दें। हम दोनों एक दूसरेको देख कर हॅंस पड़े ब्रेकफास्ट ख़तम हो गया था और अब लंच टाइम हो चला था। हमने भूक न लगने पर भी बैठ कर बातें करने के लिए खाना आर्डर किया और उसे आराम से लेकर आने को भी कहाँ। फिर दो कप कॉफ़ी मंगवा कर पुरसुकून हो कर वापस अपनी बातों में खो गए।
प्रभास ने बताया विलास का घर काफी बड़ा था ,उसके माँ बाप दुसरे शहर में रहते थे और वो यहाँ पर.
मैंने कभी पुछा नहीं था की वो क्या काम करता है..
मैं शायद पूरा दिन और पूरी रात सोया था, सुबह सुबह चाय की खुशबू से मेरी नींद खुली, पहले तो लगा की ,मां है रसोई में, पर अचानक माथे के घावों ने सब याद दिला दिया, और फिर आँखों ने भी अपनी प्यास बुझा ली, नम आँखों से विलास के पास पहुंचा तो ,देखा की वो टिफ़िन बना रहा था ,मेरी तरफ देख कर हँसा ,और बोला ' गुड मॉर्निंग कब उठे ?चलो मुँह धोलो तो,फिर मिल कर नाश्ता करते हैं. मैंने किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह सर हिलाया और मुँह धोने चला गया।
हम कूच खाके चाय पीने लगे फिर विलास ने बताया की उसकी एक डांस अकादमी है ,और उसी के लिए वो हमारे स्कूल आया करता था .सुन कर हैरानी हुई क्यों की मैंने कभी पुछा ही नहीं था दरअसल वो हमेशा मुझे अपनी बातों से मुग्ध करता था और सुकून देता था ,तो किसी और तरफ ध्यान ही नहीं जाता था हमारा /
उसने बताया की अब मैं भी उसके डांस अकादमी में दाखिला लूँगा और बेले डांस सीखूंगा मैं बहुत खुश था। पर एक डर भी था मैंने धीरे से पुछा था मैं घर नहीं जाऊँगा मेरी फीस और रहना खाना सब कैसे होगा। वह उठा और मुझे ज़ोर से गले लगा लिया उसके आगोश में मैं समझ पाया प्रेम क्या होता है उसने मुझे समझाया की जिस दिन तुम अपने पैरों में खड़े हो जाओगे अपना मक़ाम बनाओगे और अपने जैसे किसी की मदत कर के किसी का सहारा बनोगे वही मेरे लिए तुम्हारी गुरु दक्षिणा होगी। मैं खुश था और हम दोनों मिल कर मेहनत करने लगे। लोग कई तरह की बातें करने लगे।
विलास ने मुझे आत्मनिर्भर बनना सिखाया ,मेरे अंदर के डर और कुंठा को निकालने में बड़ी मदद की ,उसने बताया की कैसे, उसके माँ पापा ने उसको सहारा दिया था और उसके पसंद के नृत्य को सीखा कर उसकी अपनी डांस अकादमी खोलने में उसकी मदद की थी।
वह मुझे पूरा सहयोग देता था। हम खुश रहने लगे ,दिन महीने साल बीतते गए। मैं तो जैसे अपने घर को भूल ही गया था.. मुझसे रहा नहीं गया मैंने उसे टोका प्रभास क्या तुम्हे कभी अपने माँ की याद नहीं आई वो एक पल को रुका औरउसके आँखों में आंसूं भर गए उसने बताया की माँ की याद उसे बहुत सताती थी पर उसकी हिम्मत ही नहीं होती थी की घर पर किसी से राब्ता रखे मैंने विलास के संग रहना शुरू किया था लोग हमारे बारे में कई बातें बनाने लगे थे ऐसे में घर जा कर अपनी और उनकी बेइज़ती नहीं कराना चाहता था। वह बोलता गया की हमारा रिश्ता किसी नाम का मोहताज़ नहीं था हम दूनो अपनी अपनी ज़िन्दगियों में मसरूफ थे विलास मेरे लिए सब कूच बन गए थे मुझे समझते थे और मेरा सम्बल बन मेरी रक्षा भी करते थे
सारी दुनिया ने जब दुत्कारा था तब विलास ने मुझे सहारा दिया था। घर का सहारा नहीं मानसिक तौर पर सहारा दिया था।
प्रभास न जाने क्या क्या बता रहा था ,पर मैं तो अपने ही सोचों में गम हो गई थी।
मुझे लग रहा था जैसे प्यार केवल वासना या मातृत्व ही नहीं प्यार तो एक अनदेखा सच्चा अहसास है।
इसके ना जाने कितने रूप है ,न जाने कितने एहसासों में छुपा है. ये तो बंधनमुक्त एहसास है। हाँ यही तो प्यार है।
मेरी सोच और उसकी बातों का सिलसिला तोड़ने बैरा फिर आया। खाना लगा कर चला गया। हम फिर बातों में मगन हो गए। कुछ अपनी कही और बहुत कूच उसका सुना। बैरा फिर आया मुस्कुराता हुआ बोला रात का आर्डर लेलूं क्या सर।
हम दोनों मुस्कुरा दिए। बोलै बिल ले आओ।
फिर हम दोनोँ ने जल्द ही दुबारा मिलते रहने की बात कर के अपने अपने रास्ते चल पड़े।
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