मेरे हमसफर


जीवन के सफर में, थोड़ी घबराई सी, थोड़ी उत्सुक सी,

जड़ों को अपने ज़माने चली थी, एक बगिया की कली थी, गुलिस्तां बनाने चली थी। 

नया सफर था नए थे मुसाफ़िर, मंज़िल तय थी देखो, रास्ता खुद ही बनाने चली थी.

इक पल में देखो, दुनिया बदल कर, रिश्तों में जिम्मेदारियों की चूनर को ओढ़े चली थी। 

देखो जीवन के सफर में अपनी जड़ों को जमाने चली थी। 

बाबुल का घरौंदा, भाई का बिछौना, अम्मा की लोरी, बहना का हँसना,

सखियों की बातें, वो अल्हड़ सा सावन, वो कागज़ की कश्तियों में तैरता बचपन।

इक सुबह सब बदला, लाल कुमकुम को माथे पर सजा कर चली थी। 

इक पल में लड़की से औरत बन चली थी, अपने हमसफ़र संग, सपने सजोने चली थी। 

बचपन को लपेट कर यादों की पोटली बना चली थी। 

घर को मायका और खुद को परायी, कहलाती चली थी। 

कई सपने कई प्रश्नों को दबा के चली थी। 

देखो मेरे हमसफ़र संग, दुनिया बनाने चली थी। 

कभी बाबुल सा लाड तो कभी भाई सा बचाव, देखो हमसफ़र में मेरे, मैं सबको पाते चली थी। 

नयी थी ये दुनिया रास्ता कठिन था,

अनजान रिश्तों में, इक वही दिल के करीब था। 

हमसफ़र मेरा, मुझे मुझसे बेहतर था जाने, सोच मेरे मन में आने से पहले वो भांपें। 

मेरे अस्तित्व को था उसने निखारा, उसके संग हर इम्तहान को पार करते मैं चली थी। 

मेरी दुनिया सवारी, ममता का सौभाग्य उसने दिलाया था ,

मेरा इक संसार सजाया, उस संग हर तकलीफ को सहते मैं चली थी। 

कभी अनबन तो कभी प्यार, कभी इकरार तो कभी इंकार मैं करते चली थी। 

संबल बन कर, धैर्य वो देता है ,हर कदम साथ वो रहता है। 

मेरा मन मुझसे पहले वो जान लेता है, बिना बोले ही सबकुछ जान वो लेता है। 

हमसफ़र वो मेरा, उस संग ज़िन्दगी गुज़रते चली थी। 

जीवन के सफर में न जाने कब अपनी गुलिस्तां बना मैं चली थी।

हमसफ़र संग रास्तों में नयी मंजिलों को तलाशते चली थी। 

जीवन के सफर में, हमसफ़र संग मैं देखो कहाँ तक चली थी। लोमा।।।

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