होली आई रे ।
देखो मेल-मिलाप की ऋतु है छाई।
हर वर्ग और उम्र की दुलारी,
आई-आई रे, होली आई!
हर घर देखो खुशियाँ छाई।
कई रूप हैं, कई कथाएँ,
हर प्रांत में विविध नाम से मनाएँ।
लठमार कहीं, तो फूलों से होली,
उत्तर में रंग-बिरंगी टोली।
राजस्थान में शाही लोक संस्कृति की होली।
कहीं भगोरिया, कहीं फगुआ की मस्ती है होली।
बंगाल में ढोल यात्रा और बसंती है होली।
मटकी फोड़ है महाराष्ट्र की होली।
हुड़दंग भरी गुजरात की होली,
हॉल मोहल्ला पंजाब की टोली।
धूलंडी से हरियाणा की होली।
कृष्ण-राधा की रासलीला है होली।
मैया संग कान्हा के प्रश्न का उत्तर है होली।
गोरी राधा को श्याम रंग में,
रंगने की चाहत है होली
प्रह्लाद की भक्ति, होलिका का दहन,
असत्य पर सत्य की जीत का चलन।
बिरसा मुंडा का संकल्प है होली,
झांसी की रानी की क्रांति में भी है होली।
रंगों का खेल नहीं केवल,
अत्याचार और अन्याय का विरोध भी है होली।
हर युग में होली की कथा है अलग,
हर उल्लास की पिचकारी है अलग।
कहीं गुजिया तो कहीं ठंडाई पसंद है ।
संग मनाते होली है मिलजुल कर,
रंग लगाते हैं सभी बैर भूल कर।
नहीं सियासत न ही है मजहब की दीवार।
यह तो है भाईचारे के रंग का प्रेम अपार।
मस्ती की टोली, रंगों की होली।
आई-आई रे, आई होली।।।लोमा।।
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