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Showing posts from May, 2021

बेचैन धरा

धरा आज क्यों ,इतनी बेचैन है। क्या मनुष्यों के कुकर्मों की ये प्रतिशोध है। सदा सहती माँ तुल्य ये धरती है, क्यों अब हर पल ज्वाला और सुनामी से भरपूर है। भूमि  अपनी पूजनीय है , देखो ये तथ्य शायद हम भूल गए है। हर  पीड़ा को सह कर देखो,अब धरा भी सैय्यम विहीन है। कलि काल देखो आया है, हर  मानुष दुख को पाया है कहीं धरा से तो कहीं गगन का है, देखो प्रकोप छाया है, वायू भी देखो दूषित कर ,हम ने कोहराम मचाया है। बेचैन कर पंचतत्वो को ,ठेस उन्हें पहुंचाया है। करनी का फल मिलता है , कर्मा भी कहाँ रुकता है, अब भी ना कुछ बिगड़ा है, जब जागो तब सवेरा, ये बात सदा ही सच्चा है। चलो मिलजुल कर प्रण करते है इस धरा ,वायू, और गगन की,  बेचैनी को कुछ कम करते है, अपने हिस्से का प्रयास कर, चलो ब्रमांड में कुछ सुकून करते हैं।।।लोमा।।

इंसानियत

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                                      PC: Ekcupt इंसानों की भीड़ में देखो इंसानियत ही दब गई, उ ठने को हुई ज़रा सी, तो कुचल दी गई । मेहफिलें जमी कई, पर गैरत नही रही, देखो इंसानों के भीड़ में इंसानियत दब गई, राजनीति के खेल में मोहरे बने आवाम, देखो  ज़िन्दगी इंसान की सियासत ही बन गई। मौत की सौदेबाज़ी तो अब देखो आम सी हो गयी। रिश्वतखोरी और दगाबाज़ी अब जालसाज़ी हो गई, मौत के सौदागर बने अब देखो पालनहार, किस पर  करूं यकीन, कौन देगा दगा ,ये सोच सारे जहां की हो गई। इंसानों की भीड़ में इंसानियत दब गई, उठने को हुई ज़रा सी, तो कुचल दी गई। दवाओं का हो ज़िक्र या किसानों का मामला, पक्ष विपक्ष के खेल में जनता ही हार गई। अब तो महामारी भी इंसानों की जालसाझी बन गई, लोगों की ज़िंदगियाँ तो मुल्कों की बैर का शिकार हो गई। इंसानों की भीड़ में इंसानियत दब गई, उठने को हुई ज़रा सी, तो कुचल दी गई।।।।लोमा।।
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 चाहे यूट्यूब  खोलो या फेसबुक , न्यूज़ ही देेेख लो , हर जगह बस  कारोना का ही बोल बाला है । कहीं ऑक्सीजन की कमी ,तो कहीं बेड्स की ,कहीं मरीज़ों की मार्मिक तकलीफ, शायद ही कोई ऐसा मिले जो थोड़ा मन बहला दे।  लगता है शायद पॉजिटिव रिजल्ट के खौफ ने सब की मानसिकता को  नेगेटिविटी में बदल दिया है । मेरे कहने का ये मतलब कतई नहीं है की हमें आंख मूँद  करके सच्चाई से भागना चाहिए । पर क्या ये ठीक होगा ,की हम सदा अपने चित्त को ,एक डर, एक अनजान भय में कस्ते जाएँ । जिसको भी देखो बस आंकड़े गिनता है ,सावधानियां  बताता है और अपनी पीडा का इज़हार कर सामने वाले इंसान को भी भयभीत और कमज़ोर बनाता है । पर हम इंसान भी बड़े ढीठ  होते है ,तभी तक हम डरते है ,जब तक हमारा दिल चाहता है  । जैसे ही कोई माया दिखती  है ,अपना सारा भय छोड़ -छाड़  कर सामान्य गतिविधियों  के आधीन हो जाते हैं । आज के इस महामारी के दौर में हमें चाहिये कि हम अपने सोच  को पॉजिटिव रखें । पता है मुझे कहना बड़ा आसान है ।  जब कोविद का आतंक गावं ,मोहल्लें , अप्पार्टमेन्ट से घट कर रिश्तेदारों...

मुई फ़ोन

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 ज़िन्दगी फ़ोन की मोहताज़ हो गई। अपनों से ज़्यादा ,गैरों की हमराज़ हो गई। हाथों में फ़ोन ,कानों में ईयर फ़ोन, बस यही सबकी दास्ताने जहाँ हो गई।। पहले मिलते थे दोस्त, तो गपशप होती थी, अब तो हाथों में बैरी दुश्मन ये फ़ोन हो गई। ग्रुप्स बने कई, गपशप हुई बड़ी, हर एक वाकिया फिर तो सब मे आम हो गई। खाने की तारीफ सुनने को मैं  बेकार, पर सनम पहले मीडिया में करे  उसका प्रचार। आईने से पहले फ़ोन में सेल्फी का दीदार। काम हो कोई भी, अब फ़ोन कर गई। देखो मुझ से पहले मेरी खबर दुनिया मे फैल गई। ज़िन्दगी फ़ोन की मोहताज़ हो गई, अपनों से ज़्यादा गैरों की हमराज़ हो गई।।लोमा।

मुझ को भी डर लगता है

 हाँ मुझे भी डर लगता है, हाँ मुझे भी डर लगता है जब कोई अपना बीमार होता है। एक अनजाने डर का मुझे तब खोफ होता है, सब कुछ ठीक हो जाएगा ये उम्मीद तो होती है, पर दिल मे एक डर सा  भी होता है। लाख छुपाऊं अपनी पीड़ा, संबल बन अपनो को है जोड़ा, कहाँ मगर ये दिल सुनता है, हाँ मुझे भी डर लगता है। मेरे डर से देखो कभी ना, मेरा विश्वास डोलता है, मैं हुई जो कमज़ोर तो ,मेरे अपनों के बिखरने का डर लगता है, हाँ मुझेभी डर लगता है, पर  कमज़ोर नही ये मन होता है। रोने और घबराने को दिल करता है, पर मुझे देख मेरे अपनों का विश्वास न डगमगाए ये डर लगता है। एक अनजाना सा डर लगता है,दिल मे टीस सा वो उठता है। अपनों के हौसलों के लिए डर तब दब जाता है, फिर एक बार मन चलते रहने को कहता है, धैर्य मेरा ही हिम्मत मेरे अपनों की , फिर दिल मन को समझाता है, पर फिर मुझको भी डर लगता है,पर मेरा विश्वास नही है डोलता है। हाँ मुझको भी तो डर लगता है।।लोमा।

ख़ौफ

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                                                                                                   Pc:   Ekcuptea जब हुआ सामना ,अपने ही खोफ से।                                दीदारे ख़ौफ़ ने रूह रुला दिया। मौज़ों में कटती थी,अपनी तो ज़िन्दगी,                     उस एक वाकिये ने दिल को दहला दिया। सोचती हूँ मैं, गर यही है अन्तिम सच।               तो क्यों हर पल ख्वाइशों को अपना बना दिया। क्यों हर चाहत में थी, नई चाहत की ललक,                      क्यों मिथ्या ने ,सुखों को प्रथम बना दिया। न कोई था संगी,न कोई साथी, ...