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Showing posts from June, 2020

नज़र

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जब उस नज़र से हुआ सामना,  तब बाबुल की कही बात याद आई , बोले थे बिटिया,  "तू तो है मेरे नज़रों का नूर मेरी बगिया का फूल , तुझसे ही है मेरे गुलशन की हर खुशी है आई , पर बेटा ना भूलना तू यह बात , हर नजर नहीं होती ,पिता भाई जैसे ज़ज़्बातों के साथ ।  इस दुनिया की रीत है,  हर लड़की को समझा जाता खेलने की चीज़ है , ना घबराना इस रीत से, तुझे पाला भले ही मैंने प्रीत से,  पर है  खबर, मुझे तू नहीं है अबला , इस सदी की तू है दुर्गा,  अन्याय ना सहना कभी तू,  ना अपने अस्तित्व का करना कभी समझौता तू । निडर होकर नज़रों का करना तू सामना, ना चाल,ना सृंगार ,ना ओढनी ,ना पेशा, ना ही किसी बंधन ने, इस दरिंदगी को रोका । ये तो है प्यासे , है बस नज़र ही है प्यासी , हैवानियत इनमें बसी ,ना बहन है ना भाई।  बिटिया रहना तुझे है ,इन्हीं दरिंदों की भीड़ में,  हिम्मत तेरी है ,तेरी  शक्ति सदैव ही । नज़रों की भीड़ से ,तुझे रहना हमेशा सतर्क ही,  थोड़ी सी सावधानी, थोड़ा सा आत्म बल , थोड़ा जो तूने दिखाया, समय पर बुद्धि बल , सब नज़रें झुक जाएंगी ,दरिंदगी यह घबरा जाएगी,  कर अ...

माँ के ख़्याल पुराने हैं

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बात इतनी सी है ,बात इतनी सी है कि मां के ख्याल पुराने हैं  , है तो मां मेरी सहेली पर उसके आदर्श पुराने  है  , नसीहत वही पुरानी, वही पुराने हिदायतें हैं   यही थी सोच मेरी जब तक ना तसव्वुर किया जमाने का साल बदली सोच बदली पर लोग वही पुराने हैं  । आज भी लड़की दिल से पराया धन है  , लक्ष्मी का दिया स्वरूप है , अपनाया उसे दिल से  कहा सौभाग्य का  प्रतिरूप है,  पर अभी उसे समाज से वही तकलीफें  पुरानी है  , बात  इतनी सी है मां के ख्याल पुराने  हैं ।। आज भी वो नज़रें चुभती है दफ्तरों में ,बस  मैं ,और सिनेमाघरों में, बस आज उन्हें झेलने की हिम्मत हममें ज्यादा  है। माँ से कहती, सोच बदलो देखो दुनिया बदल गई है  , मां कहती  ,ढंग बदला है ,सोच वही पुरानी है । आज भी होता, बलात्कार और सहती केवल नारी है,  पहनावे  पर उसकी आज भी उठते तंज़ वही पुराने है ।  बात बस इतनी सी है मां की सोच पुरानी है  । मैं कहती मां अब हम मिलजुल कर काम करते हैं , कभी बर्तन मै, तो कपड़े वो धो लेते हैं  । ऑफिस से जब आऊं, ...

Dosti

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Date: 03-Jan-2020 बहुत सालों के बाद हुई जब दोस्तों से बात,   लगा फिर बचपन आया लेकर खुशियों की सौगात। वो प्यारे दिन याद आये  ,वो  शिकायतें , वो मस्तियाँ,वो कहानियां याद आयीं। हुई फिर जो ताज़ा बचपन की यादें , हर बात ,जज़्बात ,और खुराफात की यादें। बातों ही बातों में खुले कई राज़। दोस्तों से की थी हमने खुल के जो बात लगा था वो पल वहीं थम सा जाएँ  फिर एक  बार बचपन का दौर लौट आये सालों का  दायरा बस एक फ़ोन काल  का                                  था  फासला,    जो उम्र के किसी भी दौर में हमें बच्चा                                         बनाये, दोस्तों से जब बात हो तो बचपन याद आये, खुशियों की सौगात जो अपने संग लाये ।।  लोमा ।

डूबता सूरज

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डूबते सूरज को देख कर वह रो रही थी,         जिसका काम था आशिया बनाना,        वह सड़क पर सो रही थी ,       डूबते सूरज को देख कर वह रो रही थी।              गोद में ले कर  अपनी मासूम कली को,       अपने और उसकी किस्मत को रो रही थी,       हाँ अंदेशा था उसे ,ठंड के बढ़ने का,       बारिश के घटने का और                        साड़ी में सिकुड़ने  का।    सुनाती थी अपने बच्ची को वो लोरी,     चंदा मामा आएगा ,ठंड को बढ़ाएगा।     मासूम परी क्या समझ पाती,     दुःख उसका सुन कर मैं तड़प जाती।    हाँ यही हथेलियां थी ,    जिसने बनाई थी कई इमारतें।     पत्थर तोड़ा था,रेत ढोया था,    अपने उन्हीं हाथों से।    विधी का विधान देख कर,    वह हस पड़ी थी,    एक भी छत को ना पाकर वो रो पड़ी थी।    ज...

दौड़

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दौलत के पीछे ,जब भागता है आदमी,                     खुद को ,खुद से जुदा ,करता है आदमी,                  गैरों के गम पर हँसता है आदमी,                   मानवता की आड़ में, खेलता है आदमी।            दैवी शक्ति ,प्राप्त है, इस आदमी को,        वरदान है दिमाग का दिया ,इस आदमी को,               करता जिसका उपयोग यह आदमी,        पर बहक जाता ,कभी कभी ,यही आदमी,        जब बनाता ,उस वरदान को ,अभिशाप यह आदमी।        आदमी ही है, जो करता दुःखी,आदमी को,        लालच का आता ,जब बुखार आदमी को,        तो तोड़ देता है, इंसानियत का थर्मामीटर भी यह आदमी।        स्वार्थ के चरणों मे, देता सत्य का बलिदान ,यह आदमी,       कर भला ,सो हो भला, भी कहता यही आदमी...

SUHANA SAFAR..सुहाना सफर

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 वादियों को चीर कर चली जा रही थी,  ट्रेन हमारी बड़ी जा रही थी।   पहला सफर यह अकेला सफर था , ट्रेन में अकेला यह पहला सफर था । साथ में नेता भी शायर भी थे , कुछ हम जैसे सादे मुसाफिर भी थे । पहला सफर यह सुहाना सफर था , सुहानी वादियों से घिरा यह सफर था । कुछ  खट्टी यादें,कुछ मीठे तज़ुर्बे,  राह काटने के लिए आसार ही थे, कहा था जो हमने शायर उन्हें , शर्मा के बोले मुलाजिम  है हम । पूछा जो उनसे नेता है आप , इठला  के बोले जी हां जनाब । बातों का सिलसिला कुछ यों चल पड़ा , राह हमारा यूं ही गुजर गया । थे और भी मुसाफिर हमारे कंपार्टमेंट में , छह आठ बिस्तरों की इस मुसाफिर खाने में।  बातों का सिलसिला कुछ यों चल पड़ा , वादियां हटी नया शहर रुख  किया । मिले जो वो नेता तो बातें हुई , रियासत के फिर कुछ बातें हुईं।  देश-विदेश की कुछ बातें हुई, । कुछ और कट गया सफर फिर से वादियां दिखीं , गुम हो गए फिर से हम वादियों में एक बार , कुदरत की अनुपम देन में इस बार।  स्टेशन पर रुकी जो गाड़ी एक पल , खाया हमने समोसे मटर ।  हुआ शायरी का दौर जो शुरू , किया वाह वाह ...

दामिनी..DAMINI.....

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वो एक लम्हा था जो गुज़र जाएगा, अफसाना भी वो मिट जाएगा, एक बुरे ख्वाब की तरह लोग भी शायद भूल जाएंगे, फिर से एक बार हम अपनी सभ्यता निभाएंगे , साल भी गुज़र जाएगा,फिर से जब वो दिन आएगा, हाथ मे लिए मोम, फिर एक बार दो आँसू बहाया जाएगा। दिवस को दिया जाएगा एक नाम, दामिनी  को भी एक सलाम। अत्याचारियों का फिर भी कोई हल ना निकल पायेगा। माँ के आंसू ,पिता का दर्द,न कोई समझ पायेगा। उस लम्हे ने  दिया जो ज़ख्म ,वो कभी भर न पायेगा। फिर जब कोई दामिनी पुकारेगी, सोया हुआ समाज जाग जाएगा,  पर वही थकन राजनीति की, अंगड़ाई ले पलट कर सो जाएगा, एक लम्हा  था जो गुज़र जाएगा, अफसाना भी वो मिट जाएगा।।। लोमा। ।

yaden.... यादें।

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ठंड में ठिठुरता बुढापा सोच रहा था, अपने सोये हुए बचपन के सपनों को खोज रहा था, पाने और खोने के बीच गुणांक वो कर रहा था, ठंड में ठिठुरता बुढापा सोच रहा था,        ठंड बढती गई वह सोचता गया था,         ठंड  में कभी कभी ठिठुरता भी गया था,          पाया जो उसने उस पर भी सोचा था,           खोया जो उसने उसपर भी रोया था। बचपन के ठंड की याद फिर उसको आयी थी, बचपन के ठंड की जो बात याद आयी थी, रज़ाई में छुपने की बात याद आयी थी,         वो पढने से जी चुराना,वो जल्दी से सो जाना,         बड़ों को सताना , दुलार उनका पाना। इस दौर के ठंडे दिन कुछ और थे, किताबों में लिपटे सपनो को संजोए थे।          उस ठंड के नौकरी पाने की ललक थी,          मिलने पर पैसा कमाने की कसक  थी। उस ठंड की हवा कूछ यूँ लहराई थी, बचपन से बडप्पन की याद फिर से आई थी,        उस ठंड से एक बार फिर जो बुढापा ठिठुरा था,     ...

VEDANA

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उस क्षण उस पल हुई वेदना ,मेरे अंतर्मन में।  मानवता के भेष में हिंसक मानव,लगा व्याघ्र सा मेरे मन में । जब कभी मैं पूजी जाती ,गणेश मुख रूप में, मुझे रश्क हो उठता था, मानव के उस रूप में।  सोचा करती मैं भी देखो गर मानव हो जाती, तो इस भव्य समाज में कितनी खुशियां पाती।  उस पल मेरे अंतर्मन से,आवाज यही है आई, क्रूर मानव से भली हूं मैं, जो गजरूप में आई।  ललचा कर दिया जो मुझको खाने को फलाहार, मैं भी अपने कोख की मारी,खा गई पूरा अनन्नास विस्फोट हुआ तब जिहवा में,मुख हुआ लहूलूहान पर मेरी पीड़ा घातक थी,कोख में मेरे दुलारी थी। भूख प्यास से बिलख रही थी जो मेरे संग में उसे बचाऊं पर कैसे बचाऊँ था यह मेरे मन में, अग्नि वेदना और तड़प को शांत किया तब तरु में फिर मेरी दुलारी बोली मेरे मन में । मां क्यों इतनी दरिंदगी है इस मानव मन में। मैं क्या कहती अश्रु बहाकर रोदी मन ही मन में। हुई वेदना संग खुशी भी मेरे इस मन में , नहीं प्रसवी मेरी दुलारी ,इस तरह के महफिल में।  जब न छोड़ा संगी मानव ,  फिर गिनती मेरी निरीह प्राणी में। कभी होती थी राज प्रतीक मैं,  अब ...

समर्पण

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 आँसू उसके मोती ना थे ,ना थे वो हर्ष दर्शाते।  वो तो उसका दर्द था जो ,अश्रु बन बह जाते । ना ही उसको प्रीत मिला ,ना मिला कभी सम्मान । सबकुछ सह  कर करे वह अर्पण ,अपना सब कुछ मान। पिया प्रेम न उसने पाया, सदा मदिरा में लिप्त ही पाया ।  मेहनत करके जीविका को, उसने अपना धर्म बनाया । ना रोजी ,ना रोटी ,ना छत ,ना धोती , ना थी वह निर्भर पिया पर, फिर भी उसको सब कुछ मान, किया समर्पण पालन,पोषण,समझ इसीको विधी का विधान।  यही रीत है यही दुर्गति हर अबला नारी की , अक्षर ज्ञान विहीन होने की, सजा उसे निभाने थी । काश गर में पढ़ पाती तो ,उसके मन भी आया । तभी तो अबला से सबला बनाने ,उसने बिटिया को पढ़ाया।  पढ़ लिखकर जब हुई सबला, तब भी आँसू बहाए।  ये मोती अब हर्ष उमंग के आस को है दर्शातें।  सब कुछ सह कर वह अबला जो अबकी मुस्काई । इस अबला ने रीत बदलकर सबला है बनाई।।लोमा।। MOSTLY EVERY LABOUR CLASS UNEDUCATED WOMAN OF OUR COUNTRY WHO DEDICATES HER EFORTS, MONEY AND LIFE TO HER HUSBAND, RECIEVES THE REWARD OF ABUSES AND HARASMENT  FROM HIM......LOMA.